शारदीय नवरात्र के सातवें दिन हुई मां कालरात्रि की पूजा
अरवल। शारदीय नवरात्र के सातवें दिन तीन नेत्र वाली मां कालरात्रि की पूजा विधि-विधान पूर्वक किय
अरवल।
शारदीय नवरात्र के सातवें दिन तीन नेत्र वाली मां कालरात्रि की पूजा विधि-विधान पूर्वक किया गया। इस अवसर पर मां की आराधना मैं भक्त लीन रहे। जिले में स्थापित काली दुर्गा मंदिरों के समीप मां की पूजा अर्चना करने के लिए श्रद्धालु भक्तों का ताता लगा रहा ।दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से शहर हो या गांव गुंजायमान होता रहा। विद्वान पंडित उमेश मिश्र ने बताया कि इस देवी के तीन नेत्र हैं तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल है। इनकी सांसो से निकलती रहती है और गर्दभ की सवारी करती है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की बर मुद्रा भक्तों को बर देती है। दाहिने की तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है यानी भक्तों को हमेशा निडर निर्भय रहने के लिए संदेश देती हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर है ।देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है। इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए हैं। प्राचीन कथा के अनुसार राक्षस शुभ शुभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना अत्याचार करना शुरू कर दिया तो देवता गण परेशान हो गए और भगवान शिव के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती शिव का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा भगवान शिव का आदेश प्राप्त करने के बाद देवी पार्वती ने मां दुर्गा का रूप धारण किया और शुभ निशुंभ का वध किया। लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रॉक्सबेरी उत्पन्न होने लगे मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने उसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुंह में भर लिया।जिसके कारण रक्तबीज का रक्त जमीन पर नहीं गिरा और रक्तबीज पुनर्जीवित नहीं हो पाया। माता कालरात्रि की कृपा से धरती को राक्षसों से मुक्ति मिली मां कालरात्रि की पूजा आराधना करने से आसुरी शक्तियों से मनुष्य छुटकारा पाता है।