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पुनपुन नदी के घाट पर नहीं बुझती पशु-पक्षियों की प्यास

अरवल। करपी प्रखंड से होकर गुजरने वाली पुनपुन नदी के घाट पर जल का उपयोग अलग-अलग पेशे के लोग करते थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Apr 2021 06:34 AM (IST)Updated: Sun, 04 Apr 2021 06:34 AM (IST)
पुनपुन नदी के घाट पर नहीं बुझती पशु-पक्षियों की प्यास
पुनपुन नदी के घाट पर नहीं बुझती पशु-पक्षियों की प्यास

अरवल। करपी प्रखंड से होकर गुजरने वाली पुनपुन नदी के घाट पर जल का उपयोग अलग-अलग पेशे के लोग करते थे। किसान खेती के लिए पानी उपयोग करते थे तो कपड़े धोने के पेशे से जुड़े लोग अलग घाट का उपयोग करते थे। मछुआरा घाट, सरिया घाट जैसे नाम आज भी है लेकिन पशु-पक्षियों की प्यास नहीं बुझ पाती। पुनपुन नदी का महत्व और घाटों का इतिहास तो है लेकिन उपयोग नहीं रहा।

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धोबिया घाट पर नदी की बजाय खेत, मछुआरा घाट पर पानी की जगह बालू उड़ाही का धंधा तो सरिया घाट अब गांव तक जाने के सड़क के रूप में तब्दील हो गया है। दरअसल इन घाटों के बदले स्वरूप नदी की बदहाली की व्यथा का बखान कर रहा है। अरवल जिले के करपी, कुर्था एवं वंशी प्रखंड के बीचों बीच बहने वाली त्रेतायुगीन नदी पुनपुन संरक्षण के अभाव में अपनी क्षमता और सौंदर्य को खोती जा रही है। पहले लोग जल संसाधन का भरपूर उपयोग करते थे। सुबह शाम जानवरो को धोना,बर्तन,कपड़े की सफाई,स्नान आदि सभी काम नदी के पानी से ही लोग करते थे। कपडा धोने, मछली पकड़ने से लेकर कच्चे मकान के निर्माण के लिए मिट्टी व सड़के की उपलब्धता सुनिश्चित करने को लेकर अलग-अलग घाट बने थे। लेकिन धीरे-धीरे यह नदी सिकुड़ती चली गई। वर्तमान समय में सिचाई का कार्य भी मुश्किल से हो पा रहा है। गरमा फसल को सिचित करने में अक्षम साबित हो रही पुनपुन नदी

एक दशक पहले तक पुनपन नदी से सालों भर खेतों की सिचाई होती थी। लेकिन अब गर्मी के मौसम में यह बरसाती नदी की तरह सुख जा रही है। हालात यह है कि सिचाई तो दूर की बात गर्मी के मौसम में पशु पक्षी नदी के जल से अपनी प्यास भी नहीं बुझा पा रहे हैं। कभी जिले के तीन प्रखंडों की हजारों एकड़ भूमि सालों भर इससे सिचित होती थी। इस नदी की बदहाली से इलाके में भूजल स्तर भी तेजी से नीचे जा रहा है। हालात यह है कि नदी से सटे दर्जनों गांव में गर्मी में भूजल स्तर की स्थिति इस कदर खराब हो जाती है की पीने की भी किल्लत हो जा रही है।

-- निर्बल हुई पुनपुन की घारा --

पुनपुन नदी को निर्बल बनाने में लोगों की बढ़ती महत्वकांक्षी अहम भूमिका निभाई है। सिचाई के घटते परंपरागत स्त्रोत के कारण जगह-जगह से पुनपुन नदी से नहर निकाली गई। कुछ स्थानों पर बांध का भी निर्माण कराया गया। परिणाम स्वरूप अनवरत बहने वाली नदी का पानी विभिन्न धाराओं में विभक्त हो गया। जिससे इसका प्रवाह लगातार कमजोर होता चला गया। रही सही कसर अंधाधुंध बालू का उत्खनन ने पूरा कर दिया। यदि इस दिशा में सजगता नहीं बरती गई तो निकट भविष्य में यह नदी नाले में तब्दील हो जाएगी।


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