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महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही अनु

अरवल। महिला शक्ति किसी के सहारा का मोहताज नहीं होता। यदि उसे विषम परिस्थितियों में भी रहना पड़े तो उस चुनौतियों को बखूबी कबूल करते हुए आगे बढ़ती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 12:52 AM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 12:52 AM (IST)
महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही अनु
महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही अनु

अरवल। महिला शक्ति किसी के सहारा का मोहताज नहीं होता। यदि उसे विषम परिस्थितियों में भी रहना पड़े तो उस चुनौतियों को बखूबी कबूल करते हुए आगे बढ़ती है। कुछ ऐसा ही मिसाल पेश कर रही है प्रखंड क्षेत्र के रामपुरचाय पंचायत के अनु कुमारी। इसके साथ जो परिस्थिति उत्पन्न हुई है उसमें अच्छे-अच्छे लोगों के हौसले जवाब देने लगते हैं। उसके पिता की हत्या 1992 में हो गई थी। हालांकि उस समय वह अपने माता के गर्भ में ही थी। विधवा मां मालती देवी किसी तरह परिवार का सहारा बनने के लिए रोजी रोटी की जुगाड़ में दूसरे प्रदेश में कमाने चले गए थे जहां उसकी ट्रेन दुर्घटना में मौत हो गई थी। इस हादसे से उसका पूरा परिवार पूरी तरह टूट चुका था। पति के खोने के बाद बेटे की मौत का दर्द मालती के लिए असहनीय था। इस स्थिति में परिवार का बोझ उठाना उसके लिए संभव नहीं था। घर में अनु की मां के साथ उसकी विधवा भाभी भी थी। इसके अलावा उसके अन्य भाई बहनों के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई। तब तक यह कुछ पढ़ लिख ली थी। फिर क्या था हौसले को बुलंद करते हुए उसने अपनी परिवार चलाने की जिम्मेदारी अपने उपर ले ली। घर-घर जाकर छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने में जुट गई। इससे होने वाली आमदनी से वह अपने परिवार का भरण पोषण करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। इतना ही नहीं औरंगाबाद जाकर ब्यूटिशियन का प्रशिक्षण भी प्राप्त करने लगी। एक लड़की होकर लड़कों से ज्यादा जिम्मेदारी की बोझ लिए बुलंदी के साथ चल रही अनु का सहारा देने भले ही कोई लोग नहीं आया हो। लेकिन ताने कसने वालों की कमी नहीं थी। गांव में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी। लेकिन हौसले से लबालव भरी नारी शक्ति के परिचायक इस लड़की ने अपने गति को लगातार जारी रखा। परिणामस्वरूप ब्यूटिशियन के साथ-साथ नालंदा खुला विश्वविद्यालय से लाइब्रेरियन की डिग्री भी हासिल कर ली। फिलहाल यह विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में जुटी है। वह बताती है कि उसका उद्देश्य समाज के ताने पर ध्यान देकर अपने कार्यों को प्रभावित करना नहीं है बल्कि अपने कार्यों से उस उंचाई को हासिल करना है जिसे देख ताने देने वाले लोगों की बोलती खुद व खुद बंद हो जाए। इस कठिन स्थिति में जिस तरह से अनु अपने कार्यों में निरंतर जुटी हुई है वह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बन रही है। हल्की फुल्की समस्याएं आते ही लोगों का धैर्य जवाब देने लगता है वहीं इसका कार्य जिस तरह से मुसीबतों को ध्वस्त करते हुए प्रगति की ओर बढ़ रहा है। वह निराशावादी सोच रखने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

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