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बिहार से ऑनलाइन पंखा मंगाकर हरियाणा में की वट सावित्री पूजा

अररिया। वट सावित्री पर्व पति की लंबी आयु के लिए सभी सुहागन करती हैं। महिलाएं देश में हो या विदेश में अपने सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से समझौता नही करती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Jun 2021 12:41 AM (IST)Updated: Fri, 11 Jun 2021 12:42 AM (IST)
बिहार से ऑनलाइन पंखा मंगाकर हरियाणा में की वट सावित्री पूजा
बिहार से ऑनलाइन पंखा मंगाकर हरियाणा में की वट सावित्री पूजा

अररिया। वट सावित्री पर्व पति की लंबी आयु के लिए सभी सुहागन करती हैं। महिलाएं देश में हो या विदेश में अपने सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से समझौता नही करती है। वट सावित्री पूजा मुख्य रूप से मिथिलांचल में मनाने की परंपरा रही है। लेकिन धीरे-धीरे यह पर्व अन्य क्षेत्रों में भी होने लगा है। मुंबई, दिल्ली, हरियाणा में रह रहीं मिथिला की विवाहिताओं ने बिहार से बांस निर्मित हाथ पंखा (बेना) मंगाकर पूजा की रस्में पूरी करती है। लाकडाउन के कारण आवाजाही में कठिनाई के कारण इस बार कुछ महिलाएं आनलाइन हाथ पंखा मंगाकर वट सावित्री पूजा की। हरियाणा के भिवानी शहर में रह रहीं अररिया कृष्णापुरी की विवाहिता सोनम कुमारी ने बताया कि हर वर्ष पंखा अधिकतर गांव से किसी न किसी तरह मंगा लेती थी। लेकिन इस बार 220 रूपये में आनलाइन से मंगाना पड़ा। घर से कोई आया नहीं। ज्ञात हो कि इस पर्व में वटवृक्ष को

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बांस निर्मित पंखे डुलाकर शीतलता प्रदान की जाती है। मान्यतानुसार वटवृक्ष को महिलाएं अपना पति मानती हैं। कलावा बांधकर वटवृक्ष की रक्षा करती है ताकि उनके पति की भी वटवृक्ष की तरह लंबी उम्र हो। शिवपुरी अररिया के सेवानिवृत प्रोफेसर अमरनाथ झा ने बताया कि आधुनिकता की दौड़ में भी महिलाएं प्राचीन परंपराओं को अक्षुण्ण बनाए रखती है जो प्रशंसनीय है। वहीं मुंबई के थाणे में पंद्रह वर्षों से रह रहीं रानीगंज प्रखंड के शिवनगर गांव की विवाहिता सविता सुमन झा ने बताया कि जब भी वट सावित्री पर्व आता है पहले ही बिहार स्थित अपने गांव से पंखा मंगा लेती थी ताकि पूजा की तैयारी अधुरी न रह जाय। क्योंकि बिहार से बाहर ऐसा पंखा नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि यूं तो प्लास्टिक और अन्य मैटिरियल से बने खूबसूरत पंखे मिल जाता है लेकिन बांस निर्मित पंखा से ही वटवृक्ष की पूजा होती है। इसलिए इसे हर संभव निभाने की कोशिश करती हूं। सोनम कहती हैं कि समय पर पंखा मिल गया यही काफी है हालांकि पैसे कुछ अधिक लगे लेकिन काम हो गया। कोट हमारे पर्व त्योहार में प्रकृति जनित वस्तुओं का प्रयोग की परंपरा है। इस पंखे के प्रयोग से जहां धार्मिक मान्यताएं पूरी होती है वहीं हस्त उद्योग को भी बढृावा मिलता है ताकि ग्रामीण रोजगार संरक्षित रह सके।

प्रो. सुबोध ठाकुर, अररिया


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