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खरीदारों की आस पर चल रही कुम्हारों की चाक की रफ्तार

अररिया। नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में जहां एक और कुम्हार समुदाय के लोग चाक की तेज रफ्तार पर

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 11:41 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 11:41 PM (IST)
खरीदारों की आस पर चल रही कुम्हारों की चाक की रफ्तार
खरीदारों की आस पर चल रही कुम्हारों की चाक की रफ्तार

अररिया। नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में जहां एक और कुम्हार समुदाय के लोग चाक की तेज रफ्तार पर रोजी-रोटी का जुगाड़ लगा रहे हैं। दूसरी ओर अति आधुनिक मशीनों से निर्मित इलेक्ट्रॉनिक बिजली के बल्ब व झालर को दुकानों में सजाकर शहरी चकाचौंध से आंखों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। इलेक्ट्रिक बल्ब व झालरों से इस बार भी अत्यधिक धन परोक्ष रूप से नेपाल को पूर्ति होनी है। पर मेहनतकश कुम्हारों की मिट्टी के बर्तन की सौंधी खुशबू आधुनिकता से लवरेज लोगों की पसंद बनेगी। इस पर सवाल शेष है। रोटी की भरपाई के लिए चाक के सहारे जिदगी काट रहे कुम्हार समुदायों को एक बार फिर भरोसा जगा है। विदेशी चीजों के बहिष्कार के लिए कटिबद्ध लोगों से उम्मीद जगी है। दीपावली के दीये अधिक से अधिक जलाने का अरमान को पंख लगने की खुशी में कुम्हार समुदाय के चेहरे पर मुस्कान है। लेकिन यह कितने समय तक टिकेगी कहना मुश्किल है। सरकार की ऐसी कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है जिससे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की जिदगी की तस्वीर बदल सके। कुल्हड़ में चाय बेचने के सरकारी फरमान कब के धराशायी हो गई। मिट्टी के दीये बड़े पैमाने पर जलाए जाने से कीड़े मकौड़े के अत्यधिक वृद्धि पर लगाम लगता था। दीपावली के बाद बढ़े कीट पतंगों का नाश होता था। घी व तेल के दीपक शुभ माने जाते हैं। कुम्हारों के बर्तनों का उपयोग हर शुभ कार्यों में होता है। लेकिन दीपावली पर इलेक्ट्रॉनिक मार्केट हावी है, मेहनत के अनुपात में दीये से मुनाफा काफी कम होता है। यदि बिक्री बढ़ी तो गरीब कुम्हारों के दिन बहुरेंगे। नरपतगंज प्रखंड के कुम्हार क्रमश: मंजू देवी, पार्वती देवी, सोनी देवी, मधु देवी, राजेश पंडित, ललन पंडित, रामानंद पंडित, रामफल पंडित, जोगानंद पंडित, देबू पंडित, जलेसर पंडित , पायल देवी, खुशबू कुमारी आदि ने कहा कि हम लोग आज भी वर्षों पहले की जिदगी जी रहे हैं हमारे पास भोजन के अलावा किसी तरह से कपड़े का जुगाड़ हो पाता है। मध्यम वर्गीय लोगों की तरह भी हमारा जीवन यापन नहीं है। लेकिन यदि सरकार मिट्टी के बर्तनों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग होने की रणनीति बनाए तो हमारी भी तकदीर बदल सकती है। स्वदेशी अपनाओ और देश बचाओ की विचारधारा रखने वाले ओहदे पर बैठे लोग भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को बाहर धकेलने में कोई अहम भूमिका नहीं निभा रहे हैं। सरकार को कम से कम दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीये जलाने की हिदायत देनी चाहिए। लोग बल्ब एवं झालरों का इस्तेमाल दीपावली के मौके बड़े पर करते हैं। वैसे भी कोरोना काल में कुम्हार समुदाय के लोगों की हालत पस्त है। यदि समाज के प्रबुद्धजन एक ठोस नीति निर्धारण करके अधिक से अधिक मात्रा में कुम्हार के बनाए हुए चीजों का इस्तेमाल करें तो उनके भी दिन बहुरेंगे और उनके स्वजनों के चेहरे पर मुस्कान लौटेगी।

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