अरूण कुमार झा , रेणुग्राम (अररिया ): सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है। न हाथी है न घोड़ा है वहा पैदल ही जाना है...। प्रसिद्ध सिने कलाकार स्व.राजकपूर निर्देशित फिल्म तीसरी कसम के इस गाने को सुनते ही बरबस अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की याद आ जाती है। रेणु रचित ख्यातिप्राप्त उपन्यास मारे गए गुलफाम की पृष्ठ भूमि पर आधारित फिल्म तीसरी कसम के इस गाने को काफी शोहरत मिली थी।'' मैला आंचल'' व ''परती परिकथा'' जैसे कालजयी रचना के रचयिता फणीश्वर नाथ रेणु विश्व के उन थोड़े लेखकों में से एक थे जिनके हाथ में कलम थी और कंधे पर बंदूक। रेणु उप नाम से विख्यात फणीश्वर नाथ ने अपना सारा जीवन संघर्ष, त्याग और सेवा की एक मिशाल देश दुनिया के सामने रखी, जो आज भी अविश्वमरणीय है। मानवीय संवेदनाओं के कुशल चितेश फणीश्वर नाथ रेणु आंचलिक कथा जगत के सशक्त प्रतिनिधि थे। संभवत: यही कारण है कि रेणु ने गांव, खेत खलिहान सहित सामाजिक सरोकारों से जुड़े तथा लोक संस्कृति, लोक विश्वासों, लोगों के जीवन क्रम पर पड़ने वाले प्रभावों, वहां की धरती, प्रकृति, जीवन शैली जिसके वे अभिन्न अंग थे को गहरी आत्मीयता व सहजता से अपनी लेखनीय में उकेरा। बहुमुखी प्रतिभा के धनी फणीश्वर नाथ रेणु एक लेखक, उपन्यासकार, गायक,संस्कृतिकर्मी, सेनानी, तंत्र साधक व कवि, नाटककार भी थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र फारबिसगंज के पूर्व विधायक पद्म पराग
राय वेणु बताते है राजननीतिमें भी उनकी कम ही सही पर रुचि थी। वे 1972 में अपने गृह क्षेत्र फारबिसगंज विधान से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव भी लड़े। चुनाव में चर्चा में रहे पर कामयाबी नहीं मिली। राजनीति से ज्यादा उनकी रूचि गरीब, मजदूरों, अशिक्षा , कुशासन के प्रति आवाज बुलंद करना रहता था। इसलिए जन आंदोलन के प्रति उनका झुकाव था।
-------------
जेल भी गए थे कथाशिल्पी
1974 के जेपी के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में सक्रिय भूमिका में रहे। बढ़चढ़ कर उसमें हिस्सा लिया और जेल यात्रा भी की। इसी दौरान जयप्रकाश नारायण पर हुए लाठी चार्ज से आहत होकर पद्म श्री का अलंकरण को पापश्री कहकर भी लौटाया। इतना ही नही वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ नेपाली क्रांति में भी अपनी महती भूमिका निभाई। नेपाल में राणा शाही के खिलाफ संघर्ष में कोइराला बंधु के साथ सक्रिय रहे। विराटनगर जूट मिल मजदुर आंदोलन में भागीदारी दी। बचपन में ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वानर सेना के कार्यकर्ता के रूप में जेल यात्रा की। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी दी और जेल यात्रा भी सहनी पड़ी। कई भाषाओं पर थी मजबूत पकड़
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हिदी कथा साहित्य के अप्रतिम शैलीकार रेणू कई भाषाओं के जानकार थे। उनके छोटे पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद बताते है़ कि हिदी, अंग्रेजी, बंग्ला, उर्दू, नेपाली भाषा पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी।
अररिया में कोरोना वायरस से जुडी सभी खबरे
डाउनलोड करें हमारी नई एप और पायें
अपने शहर से जुड़ी हर जरुरी खबर!