मां की ममता की कोई मोल नहीं
अररिया। बेटा कितने दुबले हो गए हो। थोड़ा और लो। बाहर में न जाने क्या खाने को मिलता होगा।
अररिया। बेटा कितने दुबले हो गए हो। थोड़ा और लो। बाहर में न जाने क्या खाने को मिलता होगा। आज तुम्हरे पसंद का दहीबड़ा बनाई हूं। नहीं, नहीं बस मां। बहुत हो गया। आप को तो ऐसे लगता है कि हम दुबले हो गए हैं। मां बेटे की बीच उमड़ते इस प्यार को देखकर बहन कोमल, गुलफसा मुस्कराने लगी और अपनी हंसी को छुपाने की कोशिश करती है। इसीबीच तुम लोग चुप रहो, घर मे खाते रहती है। देख मेरा प्यारा बेटा कितना दुबला पतला हो गया है। बाहर में होटल व मेस में खाना खाकर अपना सेहत खराब कर लिया है। बेटे के लिए उमड़ रही यह ममता अररिया आरएस निवासी एक मां उसरे जहां की है, जो अपने जिगर के टुकड़े वकार पर प्यार बरसा रही थी। वकार पटना में एक निजी कंपनी में काम के साथ साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी कर रहा है। काफी दिनों के बाद कोरोना वायरस को लेकर जारी लॉकडाउन के कारण अपने घर आया है। जबसे वकार घर पहुंचा है। मां वकार का पूरा ख्याल रखती है। उसके लिए लिए अलग अलग लजीज मनपसंद खाना बनाती है। खाना डाइनिग टेबल लगाने के बाद जबतक वकार पूरा भोजन खा नही लेते तबतक उसकी मां उसके पास बैठी रहती है। आंख से ओझल होने पर वकार खोजने लगती है। जैसे मानो वकार एक छोटा बच्चा है कहीं गुम न हो जाये। उसका हर चीज का ख्याल रखती है। उन्हें लगता है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद उनका बेटा अपने काम पर चला जायेगा। इसलिए मां बेटे के लिए रंग बिरंग खाना बनाती है। वकार कि वजह से घर के अन्य सदस्यों को भी मजेदार खाना नसीब हो जाता है। वैसे इस मां को सभी बच्चों पर बराबर नजर रहती है। परंतु वाकार अक्सर पढ़ाई के सिलसिले में बाहर ही रहा है। इसलिए इसपर मां का खास प्यार बरपा है।
ऐसा ही प्यार लॉकडाउन के दौरान उन सभी घरों में है, जिनका बेटा, बेटी दूसरे शहरों से घर पहुंचे हैं। कोरोना वायरस को लेकर छात्र, नौकरी पेशा करने वाले अधिकांश लोग अपने अपने घर पहुंच गए हैं। अपनों के साथ रहने की वजह से घरों का माहौल खुशनुमा है। अधिकांश लोग बाहर रहते थे। काम काज को लेकर काफी आपाधापी बना रहता था। चाहकर भी मां अपने बच्चे का ख्याल नहीं रख पाती थी। वकार ने बताया कि मां का प्यार अनमोल है। पूरी जिदगी भी चाहेंगे तो भी मां का कर्ज नही चुका पाएंगे। मां हमेशा से मेरे अंदर आत्मविश्वाश बढ़ाते रही है। मेरे चेहरे को देखकर ही मां सबकुछ समझ जाती है। मां घर के सभी सदस्यों पर ख्याल रखती है। किसी को थोड़ी सी परेशानी होती है तो मां परेसान हो जाती है। अररिया कॉलेज के प्राचार्य डॉ. रऊफ अनवर बताते हैं कि उनकी जिदगी को संवारने में मां की अहम भूमिका रही थी। पूरी जिदगी मां की सेवा की जाए तब भी मां का कर्ज नहीं उतरा जा सकता है। मां अपने बच्चों के लिए सबकुछ निछावर कर देती है ताकि उनका बच्चा हमेशा खुश रहे। मां का प्यार अनमोल है। जिसकी कोई कीमत नहीं। जिनकी मां पास हैं वह दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान है।