नाव के बिना बाढ़ पीड़ितों को आवागमन में कठिनाई
अररिया। कहते हैं मुसीबत अकेले नहीं आती। बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों के लोग ऐसी आपदा झेल रहे हैं।
अररिया। कहते हैं मुसीबत अकेले नहीं आती। बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों के लोग ऐसी आपदा झेल रहे हैं। कहीं नाव नहीं है तो कहीं मुहैया कराई गई नाव अपने ही भार से डूब गई। जर्जर नावों के स्थान पर दूसरी नाव देने का वादा भी प्रशासन नहीं पूरा नहीं कर सका। राहत सामग्री को लेकर भी बाढ़ पीड़ितों में असंतोष व्याप्त है। खासकर जोकीहाट प्रखंड के चौकता, इसरवा, पेचैली, आमगाछी, चीरह, भगवानपुर, मझुवा, करोहबना, दोमोहना, रूपैली, मेंहदीनगर के ग्रामीणों की दुखभरी दास्तान अजीब है जिन्हें आवागमन के लिए अदद एक नाव तक नसीब नहीं है। चीरह पंचायत के डोहरी धार में नाव मिली भी थी लेकिन वह इतनी जर्जर थी कि खुद के भार से पानी में डूब जाती थी । इसके अलावा मझुवा, चौकता में भी जर्जर नाव मुहैया कराया गया था जिसे वापस कर दिया गया। सीओ अशोक कुमार ने उस समय वादा किया था कि जल्द ही दूसरी नाव मुहैया करा दी जाएगी। आठ दिनों के बाद भी कोई नाव मुहैया नहीं हो सकी है। जिससे बाढ़ पीड़ितों में असंतोष और बढ़ता जा रहा है। आठ- दस दिनों से जिनके घरों में पानी था उन्हें भी अबतक पर्याप्त राहत सामग्री नहीं दी गई है। बाढ़ पीड़ितो का कहना है कि मुसीबत की इस घड़ी में सरकार के संसाधन सिर्फ हाथी के दांत जैसा प्रतीत हो रहे हैं।
--बाढ़ के जख्म है गहरे: प्रखंड में आयी बाढ़ दर्द की लंबी व्यथा कथा लिख गई। ये जख्म इतने गहरे हैं कि कम समय में इसकी भरपाई कठिन प्रतीत हो रही है। बाढ़ के मचाए कोहराम से गांवों में कहीं घर टूटे पड़े हैं तो कहीं भूख से बच्चे मां की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं। दूसरी ओर खेतों में हरियाली के बदले मटमैला कफन ओढ़े किसानों के खेत दर्द देने भर को काफी है। इस दर्द को शब्दों में बयां करना शायद मुश्किल है। इतनी यातना सह रहे किसानों और ग्रामीणों के लिए राहत और बचाव कार्य संतोषजनक नहीं है। एक साथ इतनी मुसीबतें झेलने वाले बाढ़ पीड़ितों के जज्बे को सलाम है। ये दास्तान एक दो पंचायतों की नहीं बल्कि कमोवेश पूरे जिले के अधिकांश प्रखंड क्षेत्र की है।