फसल अवशेष प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र में उत्पादन प्रदर्शनी की हुई स्थापना
जागरण संवाददाता अररिया जलजीवन हरियाली कार्यक्रम के तहत फसल अवशेष प्रबंधन के बेहतर उ
जागरण संवाददाता, अररिया: जलजीवन हरियाली कार्यक्रम के तहत फसल अवशेष प्रबंधन के बेहतर उपयोग एवं एवं पर्यावरण की ²ष्टि से मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र अररिया द्वारा मशरूम उत्पादन प्रदर्शनी इकाई की स्थापना की गई है। नई नई तकनीक अपनाया जा रहा है। अररिया जिले की जलवायु के लिए मशरूम की खेती करना यहां के लिए बेहतर साबित हो सकता है। इसके लिए किसानों को जागरूक होना होगा। बिहार कृषि विवि के अंतर्गत 20 कृषि विज्ञान केंद्रों में अररिया ऐसा जिला है जहां पहली बार बार मशरूम डेमो यूनिट (इकाई) स्थापित की गई है। जहां मशरूम का उत्पादन हो रहा है। यहां नौ किस्म की प्रजाति उपलब्ध है। शुक्रवार को कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय विज्ञानी डा. विनोद कुमार ने मशरूम उत्पादन के विभिन्न प्रभेदों को दिखाया। कैसे इसे तैयार किया जाता है इसके बारे में विस्तृत रूप से बताया। उन्होंने कहा कि बाजार में सबसे ज्यादा मांग बटन मशरूम की है। जिसका उत्पादन पहली बार अररिया कृषि विज्ञान केंद्र में की जा रही है। किसानों को सरकारी दर पर मशरूम उपलब्ध हो जाएगा। बाजार की तुलना में इसका दर काफी कम है। जहां बाजार में 250 से 300 रुपये किलो की दर पर बिक रहा है तो कृषि विज्ञान केंद्र पर 160 रुपये प्रति किलो की दर पर लोगों को मिलेगा। जिन लोगों को आवश्यकता है वे निर्धारित मूल्य पर कोई भी व्यक्ति ले सकता है। इसकी खेती करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। इसके उत्पादन के लिए 14 से 18 डिग्री तापमान होना चाहिए। बटम मशरूम के लिए अररिया का जलवायु बेहतर है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मशरूम काफी लाभदायक है। कई बीमारियों में बेहतर काम करता है। इसकी खेती अररिया जिले के फारबिसगंज प्रखंड में हो रही है। किसानों की आय का एक बेहतर साधन है मशरूम की खेती। इसकी अलग किस्में उपलब्ध है। पौष्टिक खाद्य के रूप में मशरूम का इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसकी खेती करने की विधि मास्टर ट्रेनर द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र पर किसानों को दिया जाएगा। अगर महिलाएं मशरूम की खेती की तरफ रूख करें तो कम लागत में अधिक उत्पादन कर बेहतर आय प्राप्त कर सकती है। बटन मशरूम, ढींगरी सहित कई नामों से इसे जाना जाता है। 14 से 18 डिग्री तापमान उपयुक्त माना जाता है। मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। सितंबर माह से इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। अररिया की जलवायु के लिए यह खेती करना काफी लाभप्रद है। इसमें पोटैशियम की मात्रा अधिक है।
वरीय विज्ञानी डा. विनोद कुमार ने बताया कि मशरूम की खेती करने के लिए मास्टर ट्रेनर के रूप में बांका जिले की झिरूवा की रहने वाली विनीता कुमारी से सहायता लिया जा रहा है। इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चुका है। जगजीवन राम अभिनव से एवं राष्ट्रीय नवाचार कृषक का पुरस्कार भी मिल चुका है। वर्तमान में यह बांका जिला में मशरूम लैब चला रही है। अररिया में जिले के पांच गांवों में मौसम अनुकूल के चयनित किसानों को प्रशिक्षण प्रदान कर मशरूम खेती किसान कर रहे हैं। फारबिसगंज प्रखंड का सुखी, रामपुर, टेढी मुसहरी, सिरसिया, हरिपुर गांव में किसानों को प्रशिक्षण दे चुकी है। इस अवसर पर विज्ञानी डा. रत्नेश चौधरी, आफताब आलम सहित काफी संख्या में लोग मौजूद थे।