जिले में नहीं है ट्रैफिक थाना, जांच की व्यवस्था नहीं
सुरक्षित यातायात सप्ताह अभियान फोटो नंबर 25 एआरआर 11 व 12 कैप्शन पिछले तीन वर्ष में क
सुरक्षित यातायात सप्ताह अभियान: फोटो नंबर 25 एआरआर 11 व 12
कैप्शन: पिछले तीन वर्ष में करीब ढाई अररिया। हर साल जिले में जर्जर वाहनों के कारण सड़क दुर्घटनाओं में सौ से अधिक जिगदी काल के गाल में समा जाती है। पिछले तीन वर्ष यहां सड़क दुर्घटना की संख्या तीन सौ का आंकड़ा पार कर चुका है। इसमें तीन फीसद से अधिक दुर्घटनाएं सिर्फ जर्जर वाहनों के कारण हुई है। एमवीआई एक्ट के तहत कोई भी निबंधित गाड़ी 15 साल तक ही सड़कों पर चलने के योग्य माना जाता है। लेकिन स्थिति यह है कि 20 वर्ष पूर्व निबंधित गाड़ियां भी सड़कों पर मौत बन कर दौड़ रही है। जिले को जिला का दर्जा मिले तीन दशक बीत गए हैं। परंतु यातायात नियमों को पालन कराने व वाहनों की जांच के लिए ट्रैफिक थाना भी नहीं बनाया गया। वाहनों के फिटनेस से लेकर जुर्माना वसूलने का जिम्मा परिवहन विभाग व आम पुलिस के कंधे पर है। जहां स्टॉप की घोर कमी है। आज का काम कल पर टाला जाता है। ऐसे में बेलगाम वाहन, जर्जर वाहन तथा नियमों का उल्लंघन करने वालों पर नकेल कसना विभाग के लिए चुनौती है। रफ्तार के मानक की जांच की व्यवस्था नहीं जिले से होकर एनएच 57 और एनएच 327 ई गुजरती है। लेकिन इन पर दौड़ने वाले वाहनों व उसके रफ्तार के मानक की जांच के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। इसका अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है कि जिला बनने के दशकों बाद भी यहां ट्रैफिक थाने की व्यवस्था नहीं की गई है। नतीजतन जर्जर हालत में इन सड़कों पर बिना फिटनेस प्रमाण पत्र के दौड़ने वाले वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। खास कर ग्रामीण इलाकों में साइकिल से लेकर बड़े वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण भी जर्जर वाहन होते है। इसमें खास कर जर्जर ट्रक और ट्रैक्टर शामिल हैं जो अनफिट होने की वजह से अनियंत्रित होकर कहीं भी टक्कर मार देते हैं या फिर खुद ही दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसी दुर्घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होती है। ऐसे में जहां वाहन के फिटनेस शुल्क बचाने के चक्कर में लोग बड़ी मूल्य चुका रहे हैं।
40 फीसद वाहनों के फिटनेस है फेल जिले में तीन व चार पहिए वाहनों की संख्या दो लाख से अधिक है। साथ ही यहां नई गाड़ियों की संख्या भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। तीन साल पहले जिला परिवहन कार्यालय में केवल पांच सौ वाहनों का निबंधन हुआ था। वर्तमान में करीब दो हजार गाड़ियां निबंधित है। इसमें सबसे अधिक चार पहिया वाहन है। इसकी संख्या करीब 19 सौ है। विभागीय अधिकारी बताते हैं कि यहां के लोग लोग दूसरे जिले से भी वाहनों का निबंधन करा लेते हैं। परंतु हर साल वाहनों के होने वाले फिटनेस टेस्ट पर गौर करें तो उसकी संख्या 60 फीसद से भी कम है। 40 फीसद गाड़ियां विभागीय मानक के मुताबिक अनफिट करार दी गई है। बावजूद इसके ये गांड़ियां क्षेत्र की सड़कों पर दौड़ती नजर आती है।
फिटनेस फेल वाहनों में ट्रैक्टरों की संख्या अधिक जानकार बतातें हैं कि
जर्जर वाहनों में सबसे अधिक वाहनों की संख्या ट्रैक्टरों की है। जिसकी संख्या पांच हजार से भी अधिक है। कृषि प्रधान जिला होने की वजह से ज्यादातर जर्जर ट्रैक्टर ग्रामीण इलाकों में ही चलती है। जिससे विभाग भी उसके परिचालन पर अंकुश लगाने में सफल नहीं हो पाती है। नतीजतन खेतों व पगडंडियों के बीच से गुजरते हुए कई बार ये ट्रैक्टर हादसे के शिकार हो रहे है। साथ ही प्रमुख सड़कों पर भी जर्जर ट्रैक्टर ट्राली की वजह से ज्यादातर दुर्घटनाएं हो रही है। वहीं विभाग द्वारा शायद ही ट्रैक्टर चालकों के लाइसेंसों की जांच की जाती है। अनफिट ट्रैक्टरों की संख्या ईट भट्टा में ईट ढोने का काम में भी लाया जाता है।
बेपरवाह दौड़ रही जुगाड़ गाड़ी :
अधिवक्ता सुरेंद्र कुमार मंडल कहते हैं कि जुगाड़ गाड़ी के परिचालन पर रोक है। बावजूद क्षेत्र की सड़कों पर जुगाड़ गाड़ी बेपरवाह दौड़ती नजर आती है। इसमें ब्रेक की सुविधा नहीं होने की वजह से अधिकांश जुगाड़ गाड़ी हादसे की खास वजह बनते है। गांव में लोग जुगाड़ गाड़ी को जानलेवा गाड़ी का नाम दे रखा है। हाल के कुछ दिनों से हादसे के बढ़े ग्राफ की वजह ये जुगाड़ गाड़ियां भी रही है। जिसके चालक बिना ड्राइवरी लाईसेंस के ही इसे चला रहे हैं।
चौक-चौराहों पर रहती है पुलिस बल की तैनाती यहां यातायात के संचालन के लिए ट्रैफिक थाना नहीं है। जिससे यातायात व्यवस्था की कमान भी पुलिस प्रशासन को ही सौंपी गई है। साथ ही चौक चौराहों पर यातायात नियंत्रण के लिए पुलिस बल की तैनाती की जाती है। लेकिन पुलिस बलों की कमी की वजह से ऐसे चौक चौराहों पर ट्रैफिक व्यवस्था भगवान भरोसे ही चल रही है। इतना ही नहीं जिले में कहीं भी ट्रैफिक सिग्नल भी नहीं लगाए गए है। जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। -जर्जर जुगाड़ गाड़ी व बिना दस्तावेज ऑटो शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन हजारों की संख्या में ऑटो चलते हैं। लेकिन अधिकांश ऑटो चालकों के पास दस्तावेज का अभाव है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब कभी परिवहन विभाग या पुलिस कर्मियों के द्वारा जांच की प्रक्रिया शुरू होती तो उस दिन सड़क ऑटो से खाली हो जाता है। नतीजा भी खुलकर सामने आती है। ऑटो से अक्सर होने वाली दुर्घटना में शामिल वाहनों की पहचान भी करना मुश्किल हो पाती है।
-दो साल पर फिटनेस जारी:
एक अधिकारी ने बताया कि नए प्रावधान के तहत अब आठ साल तक के पुराने वाहनों के लिए दो साल के लिए फिटनेस जारी होता है। वाहन अगर आठ साल से अधिक पुराना है तो गाड़ी मालिक को केवल एक साल का ही फिटनेस मिलेगा। इसके लिए मोटर वाहन अधिनियम (सीएमवीआर) 1989 के प्रावधानों में संशोधन किया गया है। नए प्रावधान लागू हो जाने से वाहन चालक को हर साल प्राधिकरण के पास फिटनेस प्रमाण के लिए नहीं जाना होगा। देशभर में इस नई व्यवस्था को लागू किया गया है और इसकी अधिसूचना केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्रालय ने जारी की गई है। प्रावधानों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि नए वाहन के पंजीकरण के समय में अब फिटनेस प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होगी। इन्हें दो साल के लिए फिटनेस प्रमाणपत्र मिलेगा।
बताया कि जुर्माना की राशि भी कई गुणा बढ़ाई गई है। नियम 138बी के तहत कोई भी भारवाहक वाहन खुले में कोई भी सामान नहीं ले जा सकेगा। वाहन बिल्डिग मैटिरियल या कचरा आदि बिना ढके बिना नहीं ले जा सकेंगे। नए प्रावधानों में प्रमाण जैसे पंजीकरण, इंश्योरेंस, फिटनेस, परमिट, लाइसेंस आदि को अब नियम 139 के दायरे में लाया गया है। इसका लाभ यह होगा कि सभी प्रमाणों को ऑनलाइन जांचा जा सकेगा। कोट- गाड़ियों की जांच की जाती है। नियमों के विरुद्ध चलने वाली गाड़ियों पर नकेल कसने की कार्रवाई की जा रही है। साथ ही वाहन मालिकों व वाहन चालकों के बीच जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। -विपिन कुमार यादव, जिला परिवहन पदाधिकारी, अररिया