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विद्यानंद खुद रहे बदहाल, दूसरों को बनाया खुशहाल

अररिया। धन- दौलत इज्जत व शोहरत पाना हर किसी की लालसा होती है पर ऐसे व्यक्ति जो आर्थिक तं

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 11:20 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 06:14 AM (IST)
विद्यानंद खुद रहे बदहाल, दूसरों को बनाया खुशहाल
विद्यानंद खुद रहे बदहाल, दूसरों को बनाया खुशहाल

अररिया। धन- दौलत, इज्जत व शोहरत पाना हर किसी की लालसा होती है पर ऐसे व्यक्ति जो आर्थिक तंगी से जूझने के बाद भी दूसरों को खुशहाल बनाने में गुजार दिया हो, विरले ही मिलते हैं। इन्ही में से एक हैं रानीगंज प्रखंड के बसैटी मंडल टोला निवासी विद्यांनद मंडल। जिन्होंने अपनी पूरी जिदगी दलित, महादलित पिछड़ी जाति के बच्चों को खुशहाल बनाने में बिता दिया। वे 1980 से गरीब बस्तियों में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं। भले ही आंख की रोशनी कम हो गई हो परंतु आज भी 70 साल के उम्र में भी गरीब बच्चों के बीच ज्ञान बांट रहे हैं। उनके द्वारा पढ़ाए गए सैकड़ों बच्चे आज नौकरी, रोजगार व आत्मनिर्भर बनकर खुशहाल जिदगी गुजार रहे हैं। परंतु विद्यानंद मंडल अब भी फटेहाली व गुरबत की जिदगी जी रहें हैं। इस बुढुापे में बीबी बच्चों के साथ जीवन कट रही है।वे अपनी पूरी जिदगी शिक्षा के अधिकार के प्रति लोगों को जागृत करते रहे हैं। उनका मानना है कि शिक्षा के अंधकार को मिटाए बिना समाजिक बुराइयों व कुरीतियों को दूर नहीं किया जा सकता है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए मात्र एक रास्ता शिक्षा है। जिसे पाना हर किसी का अधिकार है।

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अंधकार को देख विचलित हुआ मन : विद्यानंद मंडल का जन्म नरपतगंज प्रखंड के खाबदाह में हुआ था। 1971 में बलवा बाजार हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा दी। वे आर्थिक तंगी के कारण आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। 1980 में उनकी शादी बसैटी गांव के मंडल टोला में हुई। वह ससुराल में ही बस गए। यहां दलित, महादलित, पिछड़ी जाति के बस्तियों में दूर दूर तक शिक्षा का कोई किरण नहीं देखा। कम उम्र में ही बेटे बेटियों की शादी करा दी जाती थी। यह देखकर उन का मन विचलित हो उठा और शिक्षा के अंधकार को मिटाने को ठान लिया। सन् 1980 के दशक में बस्ती में श्यामपट टांग कर बच्चों को तालीम देने की शुरुआत की। इस काम की शुरुआत के लिए उन्हें सुबह शाम बच्चों की टोली बटोरनी पड़ी। ककहरा से शुरुआत कराने वाले इस उत्साही को खुद पता न था कि उनकी कोशिश एक दिन बुलंदी तक जा पहुंचेगी। आज आलम यह है कि उनके प्रयास से गरीब बस्तियों के सैकड़ों बच्चे आज शिक्षक, डॉक्टर, वकील व अन्य रोजगार पाकर खुशहाल की जिदगी गुजार रहें हैं। विद्यानंद मंडल मास्टर साहब के नाम से जनने लगे। हर तरफ उन्हें सम्मान की नजरों से देखा जाता है। लोग उन्हें आदर्श मानते हैं। भले ही विद्यानंद मंडल आज भी मुफलिसी की जिदगी गुजार रहें परंतु उनके चेहरे में सिकन नहीं है। दो जून की रोटी भी उन्हें बहुत मशक्कत से मिलती है। जवानी के दिनों में दिन में मजदूरी करते थे और सुबह शाम बच्चों को शिक्षा देते थे। परंतु इस उम्र में दिन भर लोगों को पीड़ितों व जरूरत मंदों के आवेदन लिखते हैं और सुबह शाम बच्चों को पढ़ाते हैं। इस काम के बदले लोग खुशी से कुछ रुपये दे देते, जिससे उनका घर का खर्चा चलता है। विद्यानांद को पांच बच्चे हैं। तीन बड़ी बेटी को पढ़ा लिखाकर शादी करवाया। दो बेटे अभी पढ़ाई कर रहे हैं। विद्यानंद बताते हैं कि पहले भी वह आर्थिक तंगी से जूझते रहे थे और आज भी उम्र के इस पड़ाव में बदहाल हैं। परंतु उन्हें खुशी है कि 40 साल पहले उन्होंने जो ठानी थी उसे पूरा करने में जुटे रहे। उन्हें तीन बार सरकारी नौकरी करने का मौका मिला। परंतु गरीब बस्तियों में शिक्षा की दूर्दशा को देखकर शिक्षा के अंधकार को मिटाने की मुहिम में जुट गए। जिसमें हदतक कामयाबी भी मिली है। अब जीवन का कुल साल बचे हैं उसे भी शिक्षा के अलग जगाने और दूसरों की मदद करने में गुजर जाएगी।


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