ये बिल देगा GST के फेर में फंसे व्यापारियों को राहत
ई-वे बिल की सबसे अहम उपलब्धि रही है कि इसमें राज्यों की सीमाओं का विघटन हुआ है, जिससे सामान के अंतरराज्यीय ट्रांसपोर्टेशन के दौरान राज्यों की सीमा पर वैद्य कागज़ातों की जांच में लगने वाला समय बचा है।
ई-वे बिल को जीएसटी के अंतर्गत लाने पर कई तरह की चर्चाएं लंबे वक़्त से चल रही हैं। पिछले साल अक्टूबर में जीएसटी काउंसिल ने अपनी 22वीं मीटिंग में सुझाया था कि 1 जनवरी 2018 से ई-वे बिल को एक बहुत ही अलग ढंग से पेश किया जाएगा, जिसके बाद इसे 1 अप्रैल 2018 से देशभर में रोल-आउट किया जाएगा। यकीनन ये देशभर के व्यापारों के लिए एक अच्छी ख़बर थी, जिसका मतलब है कि व्यापारियों को जीएसटी से ई-वे बिल के नियमों में आए बदलावों के अनुरूप ढ़लने के लिए ज़्यादा समय मिल जाएगा। हालांकि दिसंबर 2017 में अपनी 24 वीं मीटिंग में जीएसटी काउंसिल ने ई-वे बिल को 2 महीने पहले यानी 1 फरवरी 2018 को रोल-आउट करने के आदेश के साथ व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों को चौंका दिया।
जनवरी माह के मध्य से ही इसका ट्रायल रन शुरु हो चुका है, जहां ज़्यादातर राज्य ई-वे बिल पोर्टल पर रजिस्टर कर रहे हैं, बिल जनरेट, मोडिफाई और कैंसिल कर रहे हैं, इस तरह स्थिति पूरी तरह नियंत्रित नज़र आ रही है, रोज़ाना लगभग 2 लाख ई-वे बिल तैयार किए जा रहे हैं। 1 फरवरी 2018 को जब पूरा देश ई-वे बिल का स्वागत करने के लिए तैयार था, पोर्टल क्रैश हो गया और ई-वे बिल को अगले नोटिस तक के लिए स्थगित कर दिया गया। हाल ही में जीएसटी काउंसिल की 26वीं मीटिंग में, ई-वे बिल के लिए 1 अप्रैल 2018 की नई तारीख का एलान कर दिया गया और देशभर में रोल-आउट के लिए 1 जून 2018 की तारीख तय की गई। ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि ई-वे बिल को लेकर पहले ही देश सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं से गुज़र चुका है।जनवरी माह की तरह ही, कारोबारियों को एक बार फिर सही तरीके से ई-वे बिल पालन करने का वक़्त मिल गया। हालांकि, इसमें अच्छी बात ये थी कि कारोबारी पहले से ही इसके लिए काम कर रहे थे।
इससे पहले भी कुछ राज्यों ने रजिस्टर्ड डीलरों और ट्रांसपोर्टरों के लिए ढुलाई वाले सामान के विवरण को ज़रूरी बनाया था, जिसमें एक डॉक्यूमेंट जैसे परमिट फॉर्म, वे बिल, ट्रांसिट पास या डेक्लेरेशन फॉर्म के ज़रिये कंसाइनमेंट की कीमत का विवरण दिया गया हो। तकनीक के विकास ने कुछ राज्यों की इन कोशिशों को डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रदान किया, जिसमें कर्नाटक सरकार का ई-सुगम बहुचर्चित रहा। कुछ राज्यों में चल रहे इसी प्रक्रिया को अब देशभर में कुछ बदलावों के साथ लाया जा रहा है।
जीएसटी के तहत, राज्य में या उसके बाहर 50 हज़ार से ज़्यादा कीमत के सामान की ढुलाई के लिए कंसाइनमेंट के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के ज़रिये तैयार किया ई-वे बिल ज़रूरी होगा। ई-वे बिल तैयार करने के लिए, सप्लायर और ट्रांसपोर्टर को जीएसटी पोर्टल पर कंसाइनमेंट डिटेल डालने होंगे, जिसके बाद एक यूनीक ई-वे बिल नंबर(ईबीएन) सप्लायर, ट्रांसपोर्टर को जीएसटी पोर्टल पर उपलब्ध कराया जाएगा। 100 किमी से कम दूरी के लिए, ई-वे बिल की वैद्यता एक दिन की होगी, उसके बाद हर 100 किमी के लिए एक अतिरिक्त दिन की वैद्यता होगी।
ई-वे बिल की सबसे अहम उपलब्धि रही है कि इसमें राज्यों की सीमाओं का विघटन हुआ है, जिससे सामान के अंतरराज्यीय ट्रांसपोर्टेशन के दौरान राज्यों की सीमा पर वैद्य कागज़ातों की जांच में लगने वाला समय बचा है। क्योंकि हर राज्य का अपना ही डेक्लेरेशन फॉर्मेट होता है जो ऐसे व्यापारियों के लिए बहुत बड़ी बाधा होता है जो अपने राज्य से बाहर अपना व्यापार बढ़ाने की कोशिश करते हैं। ऐसे डॉक्यूमेंटेशन में मानवीय हस्तक्षेप ज़रूरी होता था जो टैक्स चोरी और भ्रष्टाचार का ज़रिया बनता था। ई-वे बिल के आने से, सप्लायर, प्राप्तकर्ता और ट्रांसपोर्टर सभी एक ही मंच पर साथ आ सकते हैं, और इन सभी के साथ आने से, एक डॉक्यूमेंट सरकार की मान्यता के साथ तैयार होता है जो देशभर में मान्य होता है।
ई-वे बिल का कॉन्सेप्ट टैक्स में कमी और दो राज्यों के बीच सामान को कम से कम वक़्त में पहुंचाने को लेकर बनी एक बड़ी सोच के साथ लाया गया, जिसके लिए तकनीक का सहयोग भी बहुत अहम है।सिर्फ़ इतना ही नहीं, इस तकनीक को बहुत ही सरल होना चाहिए, कुछ ऐसा जिसमें दो राज्यों के बीच व्यापार कर रहा एक व्यापारी और तकनीक के बारे में ज़्यादा जानकारी न रखने वाला ट्रांसपोर्टर भी आसानी से खुद को ढाल ले और यहीं काम आता है Tally.ERP 9, जिसका हाल ही में रिलीज़ हुआ वर्जन कई फीचर्स के साथ आया है जो आपके व्यापार को आसान बनाएगा। ऐसा कहा जा सकता है कि जल्द ही राज्य और उसके बाहर काम करने वाले सभी व्यापार, आसानी से ई-वे बिल को अपना और लागू कर पाएंगे, और जल्द ही हम ई-वे बिल के तौर पर एक संगठित देश देख पाएंगे, जहां व्यापार को विकसित होने का मौका मिलेगा।