संस्कृत में है विपुल साहित्य भंडार
हरदोई, जागरण संवाददाता : भारत की समृद्धि, संस्कृति, दर्शन, धर्म, अध्यात्म, कर्मकांड़ रीति, रिवाज, जीव
हरदोई, जागरण संवाददाता : भारत की समृद्धि, संस्कृति, दर्शन, धर्म, अध्यात्म, कर्मकांड़ रीति, रिवाज, जीवन मूल्य, संस्कार-पद्धति, आयुवेंद्र, ज्योतिष आदि से संबंधित विपुल साहित्य संस्कृत में हैं। ¨कतु आज संस्कृत भाषा उपेक्षा का शिकार है। परिणामस्वरूप संस्कृत लोगों के व्यवहार, बोलचाल, लेखन एवं पठन-पाठन की भाषा नहीं रही। साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संस्था अनुभूति की ओर श्रावण पूर्णिमा के मौके पर समिति के कार्यालय पर संस्कृत दिवस पर आयोजित गोष्ठी में संस्थाध्यक्ष डा.ईश्वर चंद्र वर्मा ने यह विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संस्कृत का मजबूत आध्यात्मिक आधार, अति समृद्ध साहित्य और पूर्णत: वैज्ञानिक व्याकरण ही वे संबल है जिनके कारण संस्कृत ने अपना अक्षुण्ण अस्तित्व बनाए रखा।
सुशील कुमार वर्मा ने कहा कि प्रत्येक ¨हदू धर्मानुलंबी को अपने घर में वेद, उपनिषद, ब्रम्हसूत्र,गीता, पुराण, स्मृतिग्रंथ, रामायण, महाभारत, पंचतंत्र, चाणक्यनीति, भर्तहरिशतक,षड्दर्शन आदि ग्रंथ अनिवार्य रूप से रखना चाहिए। उनका स्वाध्याय नियमित रूप से करना चाहिए। युवाओं में भी इसके प्रति चेतना जाग्रत करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय सस्कृति से दूर होने पर हमारा नैतिक पतन सुनिश्चित है। भजन लाल गुप्ता ने कहा कि तुष्टीकरण की नीति के चलते जहां सरकारें संस्कृत की उपेक्षा और दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है वहीं अभिभावक बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने की होड़ में संस्कृत की उपेक्षा के लिए कम दोषी नहीं हैं। वेद प्रकाश अवस्थी ने कहा कि भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा में अनन्योभाव संबंध हैं, वे एक दूसरे के पूरक हैं। भारतीय संस्कृति के ज्ञान और अनुशासन के लिए संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है। कवि रामरूप त्रिवेदी, गिरिश चंद्र श्रीवास्तव ने संस्कृत भाषा के महत्व पर अपनी काव्य रचनाएं पढ़ीं। अशोक कुमार बाजपेई ने कहा कि यदि युवा पीढ़ी को संस्कारवान, चरित्रवान, धार्मिक, आत्मिक और राष्ट्रभक्त बनाना है, तो संस्कृत का पठन-पाठन और स्वाध्याय आवश्यक हैं। विवेकानंद्र झा, एससी शुक्ल, राजेंद्र कुमार ¨सह, प्रभुदयाल, शिवप्रकाश ¨सह, विजय कुमार ¨सह, गंगाशरण मिश्र, प्रहलाद ¨सह व वेदव्रत मिश्र आदि मौजूद रहे।