Move to Jagran APP

अच्छे इंसान बनाने की चुनौती स्वीकारें गुरुजन : डॉ. रक्षपाल

अलीगढ़ : देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे। उनकी ख्याति देश-विदेश

By Edited By: Published: Sat, 05 Sep 2015 02:22 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2015 04:11 AM (IST)
अच्छे इंसान बनाने की चुनौती स्वीकारें गुरुजन : डॉ. रक्षपाल

अलीगढ़ : देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे। उनकी ख्याति देश-विदेश तक थी। उन्होंने शिक्षकों को सतत् बौद्धिक निष्ठा एवं सार्वभौम करुणा की खोज का संदेश दिया। उनके सम्मान में ही सन् 1962 में शिक्षक दिवस की घोषणा हुई। वास्तव में शिक्षक की भूमिका राष्ट्र-निर्माता की है। शिक्षक पर ही यह दायित्व है कि वो राष्ट्र को सुशिक्षित व योग्य प्रतिभाएं और अच्छे नागरिक दें। शिक्षा के बिना आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक ही नहीं व्यक्तित्व विकास भी संभव नहीं। दरअसल, शिक्षा ही विकास की रीढ़ है। जीवन को सही दिशा प्रदान करती है। किसी भी मामले में देखिए शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है। मसलन, जनसंख्या नियंत्रण को ही लीजिए। वर्ष 1991-92 के सापेक्ष ¨हदू और मुस्लिमों की जनसंख्या दर घटी है। यह शिक्षा का नतीजा है कि ¨हदुओं में सवर्णो की जनसंख्या में तेजी घटी है, जबकि अन्य पिछड़े वर्ग व दलितों की आबादी पर खास फर्क नहीं पड़ा। मैं समझता हूं कि शिक्षा बेहतर होगी तो अपराध कम होंगे और लड़ाई-झगड़े भी घटेंगे।

loksabha election banner

हैव और हैव नॉट का दौर

यह दुखद है कि तमाम दावों के बावजूद सबको अच्छी शिक्षा आज भी नहीं मिल पा रही है। इस समय 'हैव' और 'हैव नॉट' का दौर है। चपरासी और चौकीदार के बच्चे भी कान्वेंट में पढ़ रहे हैं। जिनकी जेब खाली है, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पा रही। बेसिक शिक्षा की हालत तो और भी दयनीय है। वोटों की राजनीति हो रही है। इसी कारण शिक्षा की समस्याओं को लेकर कोई संवेदनशीलता नहीं दिख रही। यदि वंचित तबका भी शिक्षित हो जाए तो तमाम समस्याओं का हल स्वत: शुरू हो जाएगा।

खत्म हुई धाक

एक जमाना था, जब कॉलेजों की धाक हुआ करती थी। लोग दाखिले के लिए तरसते थे। आज का हाल देखिये। इस बार डीएस कॉलेज में बीए, बीएससी व बीकॉम प्रथम वर्ष में दाखिले के लिए 6688 ने परीक्षा दी। इनमें से 1700 ऐसे विद्यार्थी थे, जो न्यूनतम 30 फीसद अंक भी नहीं ला सके। इंटर की परीक्षा में यही लोग 75 फीसद अंक पा गए। सवाल है कैसे? जवाब सिर्फ एक है कि सरकार कोई भी दावा करे, खुलेआम नकल हो रही है। शिक्षक अपनी भूमिका का सही निर्वाह भी नहीं कर रहे।

जवाबदेही तय हो

जब तक प्राथमिक शिक्षा सही नहीं होगी, तब तक माध्यमिक और उच्च शिक्षा का स्तर भी नहीं सुधरेगा। परिषदीय स्कूलों के परिप्रेक्ष्य में हाल में आया हाईकोर्ट के आदेश सराहनीय हैं। सरकारी स्कूलों में प्रभावशाली परिवारों के बच्चे न पढ़ने से शिक्षकों की भी जवाबदेही खत्म हो गई है। आज उनसे कोई यह पूछने वाला नहीं कि पढ़ा क्या रहे हैं? कैसा पढ़ा रहे हैं? सरकार को विदेशों की तरह 'नेबरहुड स्कूलिंग' शुरू करनी होगी। यानी, मोहल्ले में ऐसा स्कूल, जिसमें वहां के सभी बच्चे पढ़ेंगे। वो गरीब के हों या फिर अमीर के। इसी से शिक्षा में समानता और एकरूपता आएगी।

शिक्षकों से दूसरे काम

प्राथमिक शिक्षा का स्तर गिरने के यूं तो कई कारण हैं। आज शिक्षकों को अध्ययन-अध्यापन के लिए समय नहीं मिल रहा। मिड-डे मील बांटने से लेकर ड्रेस सिलाने-बंटवाने तक का जिम्मा उन्हीं पर है। पढ़ाई से अलग इतने काम थोप दिए गए हैं कि शिक्षकों के पास पढ़ाने का वक्त ही नहीं है। असल में यह बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है।

गुरु-शिष्य के रिश्ते

एक जमाना था, जब बच्चों को शिष्टाचार व नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाता था। अच्छे और बुरे का भेद भी शिक्षक बताते थे। माता-पिता और गुरुजनों का आदर करना सिखाया जाता था। धैर्य और संयम से आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाती थी। गुरुओं की कोशिश होती थी कि शिष्य अच्छे और योग्य नागरिक बनें। शिष्य भी गुरुओं का आदर करते थे। आज न अच्छे शिक्षक हैं, न आज्ञाकारी शिष्य। क्या हम ऐसे अच्छे नागरिक बना लेंगे?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.