इसलिए नवरात्र के दौरान महाशक्ति की पूजा दुर्गा, लक्ष्मी,सरस्वती के रूप में की जाती है
नवरात्र की पूजा जीव से शिव तक, व्यक्ति की आत्मा से ब्रह्मांडीय आत्मा तक की गई साधक की यात्रा को माना जाता है।
By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 11:56 AM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 05:10 PM (IST)
शक्ति की अवधारणा एक समान होती है - चाहे आध्यात्मिक जीवन में हो या सांसारिक जीवन में। अस्तित्व की मौजूदगी का आधार वह ऊर्जा है, जिसे शक्ति कहा जाता है। कई सारी छोटी शक्तियां असीम ऊर्जा द्वारा संचालित की जाती हैं। इस ऊर्जा को ईश्वरीय शक्ति कहा जाता है।
इसे संपूर्ण ब्रह्मांड की जड़ भी माना जा सकता है। इसलिए नवरात्र के दौरान महाशक्ति की पूजा महादुर्गा,
महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में की जाती है। नवरात्र की पूजा जीव से शिव तक, व्यक्ति की आत्मा
से ब्रह्मांडीय आत्मा तक की गई साधक की यात्रा को माना जाता है। भक्त की सबसे बड़ी दुश्मन उसकी अपनी
मानसिक कमजोरियां और नकारात्मक प्रवृत्तियां होती हैं। उन पर विजय पाने के लिए शक्ति और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता पड़ती है। यही कारण है कि दुर्गा की पहले तीन दिनों की पूजा में मन के आवेगों और विचारों
को नष्ट कर उसे शुद्ध किया जाता है। उसके बाद गुणों का ‘धन’ प्राप्त करने के लिए अगले तीन दिनों तक
देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ज्ञान और विवेक प्राप्त करने के लिए देवी सरस्वती की अंतिम तीन दिनों
तक पूजा की जाती है। दस इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने और ‘ईश्वरीय शक्ति से साक्षात्कार’ का प्रतीक है
दसवां दिन विजयादशमी।
प्रेम ऊर्जा है, जो मनुष्य, प्रकृति और भगवान को एक साथ जोड़ता और बांधता है। हम मनुष्यों में कुछ चीजों को ‘बड़ा’ या महत्वपूर्ण और कुछ अन्य चीजों को ‘छोटा’ या तुच्छ समझने की प्रवृत्ति होती है। वास्तव में कुछ भी तुच्छ नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि हम ‘छोटी’ चीजों को भी ‘बड़े’ रूप में देखने में सक्षम बनें। बीज आकार में छोटा होता है, लेकिन एक छोटे बीज से ही एक बड़ा पेड़ बनता है। हर चीज में ईश्वरीय सौंदर्य और अनुग्रह देखने
की हमें कोशिश करनी चाहिए। सृजन में सब कुछ मान्य है और सेवा करना ही हमारा उद्देश्य है।
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