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सफलता के करीब पहुंचा देते हैं कबीर के ये 10 दोहे

जन्म से लेकर युवावस्था तक संघर्ष की आंच में तपने वाले कबीर दास की 9 जून को जयंती है। ऐसे में जानें उनके द्वारा कहे वो 10 दोहे, जो किसी को भी पहुंचा देते हैं सफलता के करीब।

By abhishek.tiwariEdited By: Published: Thu, 08 Jun 2017 03:32 PM (IST)Updated: Thu, 08 Jun 2017 03:32 PM (IST)
सफलता के करीब पहुंचा देते हैं कबीर के ये 10 दोहे
सफलता के करीब पहुंचा देते हैं कबीर के ये 10 दोहे

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय

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बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।

अर्थ : गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खड़े हैं। पहले किसके चरण-स्‍पर्श करें। कबीरदास जी कहते हैं, पहले गुरु को प्रणाम करूंगा क्‍योंकि उन्‍होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

अर्थ : कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ : सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय

अर्थ : अगर हमारा मन शीतल है, तो इस संसार में हमारा कोई बैरी नहीं हो सकता। अगर अहंकार छोड़ दें तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय

मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय

अर्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्‍मा तुम मुझे केवल इतना दो कि जिसमें मेरे गुजारा चल जाए। मैं भी भूखा न रहूं और अतिथि भी भूखे वापस न जाए।

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई.

सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ.

अर्थ : शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है। य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.

आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर .

अर्थ : कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही

अर्थ : जब मैं अपने अहंकार में डूबा था, तब प्रभु को न देख पाता था। लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया। ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥

अर्थ: खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है। और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।


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