Move to Jagran APP

यहां हो रही है 150 सालों से खंडित शिवलिंग की पूजा

भारत में एक ऐसी जगह है जहां खंडित शिवलिंग की पूजा सालों से हो रही है। इसके पीछे एक रोचक कहानी है।

By abhishek.tiwariEdited By: Published: Sat, 22 Jul 2017 01:04 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jul 2017 02:33 PM (IST)
यहां हो रही है 150 सालों से खंडित शिवलिंग की पूजा
यहां हो रही है 150 सालों से खंडित शिवलिंग की पूजा

झारखंड का महादेवशाल धाम

loksabha election banner

शास्‍त्रों और पुराणों में खंडित मूर्ति की पूजा करना अवैध माना गया है। किसी भी मंदिर में टूटी हुई या खंडित मूर्ति नहीं मिलेगी। लेकिन झारखंड के गोइलकेरा के बड़ैला गांव की कहानी अलग है। यहां पर महादेवशाल धाम नाम से एक शिव जी का मंदिर है। इस मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है। शिवलिंग का आधा हिस्‍सा कटा हुआ है, फिर भी लोग दूर-दूर से इस मंदिर में पूजा करने आते हैं। 

शिवलिंग खंडित होने की रोचक कहानी 

यह कहानी है 19 वी शताब्दी के मध्य की जब गोइलेकेरा के बड़ैला गाँव के पास बंगाल-नागपुर रेलवे द्वारा कलकत्ता से मुंबई के बीच रेलवे लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था। इसके लिए जब मजदूर वहां खुदाई कर रहे थे तो उन्हें खुदाई करते हुए एक शिवलिंग दिखाई दिया। मजदूरों ने शिवलिंग देखते ही खुदाई रोक दी और आगे काम करने से मन कर दिया। लेकिन वहां मौजूद ब्रिटिश इंजीनियर ‘रॉबर्ट हेनरी’ ने इस सब को बकवास बताते हुए फावड़ा उठाया शिवलिंग पर प्रहार कर दिया जिससे की शिवलिंग दो टुकड़ो में बंट गया पर इसका परिणाम अच्छा नहीं हुआ और शाम को काम से लौटते वक़्त उस इंजीनियर की रास्ते में ही मौत हो गई।

आस्‍था और विश्‍वास की बात

इंजीनियर की मौत के बाद मजदूरों और ग्रामीणों में दहशत फैल गई। सभी को लगा कि उस शिवलिंग में कोई दिव्‍य शक्‍ित है। ऐसे में वहां पर रेलवे लाइन की खुदाई का जोरदार विरोध होने लगा। बाद में अंग्रेज अधिकारियों को लगा कि यह आस्था एवं विश्वास की बात है और ज़बरदस्ती करने के उलटे परिणाम हो सकते है तो उन्होंने रेलवे लाइन के लिए शिवलिंग से दूर खुदाई करने का फैसला किया। इसके कारण रेलवे लाइन की दिशा बदलनी पड़ी और दो सुरंगो का निर्माण करना पड़ा।

शिवलिंग के दोनों टुकड़ो की होती है पूजा 

खुदाई में जहां शिवलिंग निकला था आज वहां देवशाल मंदिर है तथा खंडित शिवलिंग मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है। जबकि शिवलिंग का दूसरा टुकड़ा वहां से दो किलोमीटर दूर रतनबुर पहाड़ी पर ग्राम देवी ‘माँ पाउडी’ के साथ स्थापित है जहां दोनों की नित्य पूजा-अर्चना होती है। परम्परा के अनुसार पहले शिवलिंग और उसके बाद माँ पाउडी की पूजा होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.