दाऊजी महाराज ने खेली कोड़ेमार होली
रंग पर्व के बाद गुरुवार को योगीराज श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता दाऊजी महाराज के धाम बलदेव में हुरंगा की बारी थी। इसमें हुरियारिनों ने हुरियारों से कोड़ेमार होली खेली। इस दौरान जमकर रंग और अबीर-गुलाल बरसा।
बलदेव। रंग पर्व के बाद गुरुवार को योगीराज श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता दाऊजी महाराज के धाम बलदेव में हुरंगा की बारी थी। इसमें हुरियारिनों ने हुरियारों से कोड़ेमार होली खेली। इस दौरान जमकर रंग और अबीर-गुलाल बरसा।
यहां की होली थोड़ी अलग इसलिए है क्योंकि न तो हुरियारिनें लाठी बरसातीं हैं, न ही फूल। यहां हुरियारिनें हुरियारों के कपड़े फाड़कर उनसे कोड़ा बनाकर उन्हीं की पीठ पर प्रेम से प्रहार करती हैं। गुरुवार को दाऊजी मंदिर के हौद टेसू के रंग से लबालब थे। होली शुरू हुई तो देखते-देखते हौद खाली हो गए और मंदिर प्रांगण रंगीन तालाब के रूप में बदल गया। वाहनों के आने का क्रम दोपहर तक जारी रहा। इस बार वाहनों को मंदिर से करीब एक मिलोमीटर पहले ही एक विद्यालय परिसर में पार्क करा दिया गया। हुरंगा का आनंद लेने के लिए विदेशी पर्यटक भी बलदेव आए हुए थे। मंदिर के चौक में परंपरागत रूप से समाज गायन सुबह से शुरू हो गया था। सुबह ठाकुर दाऊजी महाराज व माता रेवती के विग्रह को श्वेत पोशाक धारण कराई गई। भक्त श्री दाऊजी महाराज के जयकारे लगाते रहे। बलदाऊ के हुरंगा में परंपरानुसार हुरियारों ने अपने-अपने निवास पर भांग घोटकर श्री दाऊजी महाराज का भोग लगाया और कहा दाऊदयाल ब्रज के राजा भांग पीवें तो यहां पै आजा।
मंदिर प्रांगण में पानी की टंकी के पास बने मंच पर श्री कृष्ण-बलराम, राधा व सखियों के स्वरूप विराजमान थे। संगीत के स्वरों से पूरा मंदिर दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर रहा था।
हुरंगे के शुरू में तमाम हुरियारों एवं हुरियारिनों ने होली के रसिया गाते हुये मंदिर में प्रवेश किया। बलराम कुमार होरी खेलें. व आज बिरज में होरी रे रसिया, कौन के हाथ पिचकारा सोहे प्यारे कौन के हाथ तमोरी रे रसिया, आदि गा रही थीं। इससे पहले हुरंगे की शुरुआत में गीत-संगीत के साथ हाथ में झंडा लेकर श्री दाऊजी महाराज को आमंत्रित किया गया।
मंदिर में रंगों से भरकर रखे गये हौदों से बाल्टियों में भरकर हुरियारे हुरियारिनों पर प्रेम स्वरूप रंग डालते रहे। हुरियारिन हुरियारों के वस्त्रों को फाड़कर उनके कोडे़ बनाकर हुरियारों पर बरसाने लग गई। यह सिलसिला दो-ढाई घंटे तक चलता रहा। हुरंगा का समापन ढप धरि दे यार गयी परकी गायन के साथ हुआ।
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