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अपरा एकादशी को कीर्तन से करें रात्रि जागरण और द्वादशी को स्‍नान-दान से खोले व्रत

हिंदू धर्म की मान्‍यता के अनुसार हर साल चौबीस एकादशियाँ होती हैं। अधिकमास या मलमास आने पर इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इनमें से ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है।

By molly.sethEdited By: Published: Mon, 22 May 2017 03:12 PM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 03:12 PM (IST)
अपरा एकादशी को कीर्तन से करें रात्रि जागरण और द्वादशी को स्‍नान-दान से खोले व्रत
अपरा एकादशी को कीर्तन से करें रात्रि जागरण और द्वादशी को स्‍नान-दान से खोले व्रत

जाने अपरा एकादशी की कहानी 

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ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी, अपरा एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भगवान नारायण को प्रसन्‍न करने के लिए किया जाता है। कहते हैं प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज राजा से ईष्‍या करता था। एक दिन अवसर पाकर उसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर उसी पीपल के पेड़ पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को ये आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि वहां से गुजर रहे थे। जब उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना तो उसे पेड़ से नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का सारा पुण्य प्रेत को दे दिया। इस कारण से राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।

रात्रि जागरण और पारण

इस व्रत को आज दिन भर करने के बाद भक्‍तों को आज पूरी रात जागरण करना चाहिए। इसके लिए वे भजन कीर्तन करते हुए समय बितायें। रात्री जागरण के पश्‍चात अगले दिन सूर्योदय से पहले स्‍नान करके स्‍वच्‍छ होने के बाद भगवान श्री नारायण के वामन अवतार का ध्‍यान करते हुए पूजा पाठ के साथ व्रत का पारण करना चाहिए। भगवान को प्रसन्‍न करने के लिए धूप, दीप, नेवैद्य और सफेद फूलों से उनका पूजन करें। प्रसाद में मौसमी फलों का भी भोग लगाएं। इसके बाद यथोचित दान पुण्‍य भी करें। 

महात्‍मय

अपरा एकादशी का अर्थ ही है अपार सुख और वैभव देने वाली अत इस व्रत को करने से अपार धन और वैभव प्राप्‍त होता है। विद्वानों का मानना है कि माघ में सूर्य के मकर राशि में होने पर प्रयाग में स्नान, शिवरात्रि में काशी में रहकर व्रत, गया में पिंडदान, वृष राशि में गोदावरी में स्नान, बद्रिकाश्रम में भगवान केदार के दर्शन या सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान और दान से जो फल मिलता है, उसके बराबर पुण्‍य अपरा एकादशी के मात्र एक व्रत से मिल जाता है। अपरा एकादशी को उपवास करके भगवान वामन की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। इसकी कथा सुनने और पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। इस व्रत को करने वाले के पास कभी धन की कमी नहीं होती। 


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