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लघुकथा: गलत मार्ग का अंजाम

बहुत से पुरुष और स्त्री ऐसे है जो किन्ही कारणों से अपने जीवनसाथी के साथ धोखा देते है और अनैतिक राह पर चलते है

By Babita KashyapEdited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 01:00 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 01:08 PM (IST)
लघुकथा: गलत मार्ग का अंजाम
लघुकथा: गलत मार्ग का अंजाम

यह कहानी बेशक पुराने दृश्य को लिए है लेकिन फिर भी आज के परिपेक्ष में काफी मायने रखती है क्योकि आजकल भी यही होता है भले ही इन्सान के तौर तरीके बदल गये है बहुत से पुरुष और स्त्री ऐसे है जो किन्ही कारणों से अपने जीवनसाथी के साथ धोखा देते है और अनैतिक राह पर चलते है जबकि हमें चाहिए कि अगर हम अपनी निजी जिन्दगी से संतुष्ट नहीं है तो अपने जीवनसाथी से बात करें उसके बाद जो भी रास्ता बन पड़े वो करें लेकिन तरीका नैतिक होना चाहिए वर्ना अनैतिक रास्तों पर चलने वालों की कैसी हालत हो जाती है वो आप इस कहानी के जरिये बखूबी समझ सकते है।

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किसी ग्राम में एक दम्पति रहा करते थे। किसान तो वृद्ध था पर उसकी पत्नी युवती थी। अपने पुरुष से संतुष्ट नहीं रहने के कारण किसान की पत्नी सदा पर-पुरुष की टोह में रहा करती थी। इसी कारण वो एक क्षण भी घर में नहीं ठहरती थी। एकदिन किसी ठग ने उसे घर से निकलते देख लिया उसने उसका पीछा किया और जब वो एकांत में पहुँच गयी तो ठग ने उसे बोला कि 'मेरी पत्नी का देहांत हो चुका है 'और मैं अब तुम पर अनुरक्त हूँ तुम मेरे साथ चलो वो बोली अगर ऐसी ही बात है तो मेरा पति वृद्ध है वो हिल डुल नहीं सकता जबकि उसके पास बहुत सा धन है मैं उस धन को लेके आती हूँ ताकि हमारा भविष्य सुखमय बीते। उसने कहा ठीक है जाओ और कल प्रात: काल मुझे इसी स्थान पर मिलना। इस प्रकार उस दिन वह किसान की स्त्री अपने घर लौट गयी और रात होने पर जब उसका पति सो गया तो तो उसने अपने पति का धन समेटा और उस जगह पर पहुंची जंहा उसे उस ठग ने बुलाया था। दोनों वहां से चल दिए।

दोनों अपने ग्राम से बहुत दूर निकल आयें तो मार्ग में एक गहरी नदी आ गयी। उस समय ठग के मन में विचार आया कि इस औरत को मैं अपने साथ ले जाकर मैं क्या करूँगा और फिर इसको खोजते हुए कोई इसके पीछे भी आ गया तो भी संकट ही है अत: किसी प्रकार इससे सारा धन हथियाकर अपना पिंड छुड़ाना चाहिए। यह सोचकर उसने उस स्त्री से कहा नदी बड़ी गहरी है पहले मैं इस गठरी को अपनी पीठ पर लादकर उस ओर छोड़ आता हूँ फिर तुम्हें मैं अपनी पीठ पर लादकर उस और ले चलूँगा । दोनों का एक साथ चलना बेहद कठिन है। 'ठीक है ऐसा ही करो 'उस स्त्री ने कहा तो ठग ने कहा 'अपने पहने हुए कपडे और गहने भी देदो' ताकि नदी में चलने में कोई परेशानी नहीं हो और कपडे भीगेंगे भी नहीं तो उस मूर्ख स्त्री ने ऐसा ही किया। उन्हें लेकर ठग नदी के उस पर गया और फिर लौटकर ही नहीं आया। वह औरत अपने कुकृत्यों के कारण कहीं की नहीं रही। इसलिए कहते है अपने हित के लिए कुकर्मो का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए।

साभार: guide2india.org

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