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सूफी दरगाह पर हमले से जागा पाकिस्तान, 100 आतंकी मार गिराए

पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सहवान कस्बे में स्थित लाल शाहबाज कलंदर दरगाह में हुए आत्मघाती हमले के बाद पाक आर्मी ने 100 आतंकियों को मार गिराया है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Fri, 17 Feb 2017 11:49 PM (IST)Updated: Sat, 18 Feb 2017 06:06 AM (IST)
सूफी दरगाह पर हमले से जागा पाकिस्तान, 100 आतंकी मार गिराए
सूफी दरगाह पर हमले से जागा पाकिस्तान, 100 आतंकी मार गिराए

इस्लामाबाद, प्रेट्र। आतंकियों के संरक्षक पाकिस्तान को सूफी संत लाल शहबाज कलंदर की दरगाह पर हुए आत्मघाती धमाके ने जगा दिया है। गुरुवार रात इस धमाके में मारे गए लगभग सौ बेकसूरों का हाथों हाथ बदला लेते हुए पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने सौ से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया।

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पाकिस्तान अब तक भारत में आतंकियों को समर्थन ही देता रहा है। यहां तक कि जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी सरगना मसूद अजहर को भी खुलेआम पनाह दिए हुए है। इसमें चीन भी उसकी मदद कर रहा है। वह उसे संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के लिए अब भी भारत से सुबूत मांग रहा है। पाक में यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब भारत में आतंकियों के समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई पर राजनीति हो रही है। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के समर्थक पत्थरबाजों पर सेना प्रमुख बिपिन रावत की कड़ी कार्रवाई की चेतावनी का कांग्रेस तक ने विरोध कर दिया है।

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पाकिस्तान में सिंध प्रांत स्थित शहबाज कलंदर की दरगाह पर हुआ यह आतंकी हमला पिछले कुछ वर्षो में पाकिस्तान में हुए सर्वाधिक घातक हमलों में से है। हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आइएस ने ली है। पैरामिलिट्री सिंध रेंजर्स ने बताया कि प्रांत में रातभर चले अभियान में चार दर्जन से ज्यादा आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया। वहीं, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की पुलिस ने तीन दर्जन आतंकियों को मारने का दावा किया है। अधिकारियों के मुताबिक, कबायली क्षेत्र खुर्रम, बलूचिस्तान और पंजाब प्रांत के सरगोधा में भी कई आतंकियों को मारने में सफलता मिली। सेना अधिकारियों ने बताया कि आतंकियों के खिलाफ यह अभियान आगे और भी तेज होगा क्योंकि सरकार ने आतंकवाद को जड़ से मिटाने का संकल्प लिया है।

पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान को वहां छुपे 76 आतंकियों की सूची सौंपी है। अफगान सरकार से इन आतंकियों के विरुद्ध शीघ्र कार्रवाई को कहा गया है। इस बीच, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से लगी तोरखाम सीमा भी सील कर दी। यह सीमा अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत और पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा को जोड़ती है।

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बगदाद से आए थे बाबा शहबाज कलंदर के पुरखे इस्लामाबाद

लाल शहबाज कलंदर के पुरखे बगदाद से ईरान के मशद आकर बस गए थे। इसके बाद वे वहां से अफगानिस्तान के मरवांद चले गए जहां 'दमादम मस्त कलंदर' वाले बाबा का जन्म हुआ। लाल शहबाज कलंदर फारसी जुबान के कवि रूमी के समकालीन थे। उन्होंने इस्लामी दुनिया का सफर किया और आखिर में सिंध के सेहवान आकर बस गए। उन्हें यहीं दफनाया भी गया। कहा जाता है कि 12वीं सदी के आखिर में वह सिंध आ गए थे। उन्होंने सेहवान के मदरसे में पढ़ाया और यहीं पर उन्होंने कई किताबें भी लिखीं।

उनकी लिखी किताबों में मिजान-उस-सुर्फ, किस्म-ए-दोयुम, अक्द और जुब्दाह का नाम लिया जाता है। मुल्तान में उनकी दोस्ती तीन और सूफी संतों से हुई जो सूफी मत के 'चार यार' कहलाए। तकरीबन 98 साल की उम्र में 1275 में उनका निधन हुआ और उनकी मौत के बाद 1356 में उनकी कब्र के पास दरगाह का निर्माण कराया गया। कहते हैं कि सूफी कवि अमीर ख़ुसरो ने बाबा लाल शाहबाज कलंदर के सम्मान में ही 'दमादम मस्त कलंदर' गीत लिखा था। बाद में इस गीत में बाबा बुल्ले शाह ने कुछ बदलाव किए थे।

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