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नेपाल: अविश्वास प्रस्ताव से पहले ओली का इस्तीफा, भारत के लिए क्या हैं मायने ?

नेपाल में राजनीतिक संकट पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 25 Jul 2016 03:17 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jul 2016 08:05 AM (IST)
नेपाल: अविश्वास प्रस्ताव से पहले ओली का इस्तीफा, भारत के लिए क्या हैं मायने ?

काठमांडू । नेपाल राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है। अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही नेपाल के प्रधानमंत्री पद से के पी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है। ओली ने इस्तीफा देने से पहले अविश्वास प्रस्ताव को देश को प्रयोगशाला में बदलने और नए संविधान को लागू करने में रोड़े अटकाने की विदेशी ताकतों की साजिश करार दिया। बताया जा रहा है कि नेपाली कांग्रेस के सहयोग से माओवादी नेता प्रचंड नेपाल के अगले पीएम हो सकते हैं।

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ओली का इस्तीफा, भारत के लिए फायदेमंद !

नेपाल में मौजूदा राजनीतिक संकट को विदेश नीति के जानकार भारत के लिए फायदेमंद बता रहे हैं। नेपाल में मौजूदा राजनीतिक संकट के लिए विशेषज्ञ ओली की कार्यप्रणाली को जिम्मेदार बता रहे हैं। नेपाल की आबादी में 51 फीसद हिस्सेदारी रखने वाले मधेस समुदाय के मुद्दे को ओली ठीक ढंग से नहीं सुलझा सके। 2015 के भूकंप का सामना करने वाले नेपाल के प्रभावित इलाके अभी भी पुनरोद्धार का इंतजार कर रहे हैं। तीसरा ओली का अतिराष्ट्रवाद की संकल्पना ने एक ऐसी धारणा पेश की जैसे लगा कि वो खुद को चीन के करीब और भारत विरोधी ताकत के तौर पर खुद को पेश कर रहे हैं। जानकारों को कहना है कि मधेस आंदोलन के वक्त भारत के ऊपर इस बात के आरोप लगे कि वो जानबूझकर मधेसियों का समर्थन कर रहा है। लेकिन एक लंबे अंतराल के बाद नेपाल की दूसरी राजनीतिक पार्टियोें को एहसास होने लगा कि इस तरह की समस्या के लिए भारत से कहीं अधिक जिम्मेदार ओली खुद थे। जानकारों का कहना है कि अगर नेपाल की कमान प्रचंड के हाथों में आती है, तो भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में और मजबूती आएगी।

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इशारों में ओली ने भारत पर साधा निशाना

भारत की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल को एक प्रयोगशाला के तौर पर विकसित किया जा रहा है और विदेशी ताकतें ऐसी साजिश कर रही हैं जिससे संविधान लागू नहीं किया जा सके। ओली ने कहा कि नौ महीने पहले जब उन्होंने सत्ता की कमान संभाली थी, उस वक्त देश गंभीर संकट से जूझ रहा था और यह दुख की बात है कि सरकार ऐसे समय में बदल रही है जब यह पिछले साल आए जानलेवा भूकंप की ओर से दिए गए दर्द से उबर रही है। पिछले साल नेपाल में आए भीषण भूकंप में करीब 9,000 लोग मारे गए थे।

सीपीएन-यूएमएल के नेता ओली ने कहा कि इस वक्त सरकार में बदलाव का खेल रहस्यमय है। उन्होंने कहा कि उन्हें अच्छा काम करने की सजा दी गई। पिछले साल सितंबर में नए संविधान को अपनाने के बाद से ही नेपाल में राजनीतिक संकट कायम है। मधेसी समुदाय नए संविधान का विरोध कर रहा है, क्योंकि उन्हें आशंका है कि इससे देश को सात प्रांतों में बांट कर उन्हें हाशिये पर डाल दिया जाएगा ।

मधेसियों के आंदोलन का पड़ा था असर

करीब पांच महीने चले मधेसियों के विरोध-प्रदर्शन के कारण नेपाल में जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति ठप पड़ गई थी। पुलिस के साथ झड़प में 50 से ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद यह प्रदर्शन फरवरी में समाप्त हुआ था। नेपाल ने मधेसी संकट के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि, भारत ने इस आरोप को खारिज किया है ।

माओवादियों ने ओली को सत्ता से बेदखल करने का फैसला दो माह पहले तब किया जब उन्होंने कहा कि वह मधेसियों की चिंताएं दूर करेंगे और पिछले साल भूकंप में तबाह हुए घरों को फिर से बनाएंगे। रविवार को अपने संबोधन में ओली ने कहा कि पिछले साल जब उन्होंने सत्ता संभाली, उस वक्त नेपाल-भारत संबंध सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था । बहरहाल, उनके प्रयासों से स्थिति सामान्य हुई।

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ओली ने पिछले हफ्ते काठमांडू में हुई एमिनेंट पीपुल्स ग्रुप की बैठक का जिक्र किया जिसमें 1950 की नेपाल-भारत शांति एवं मैत्री संधि सहित नेपाल एवं भारत के बीच हुई विभिन्न संधियों एवं समझौतों की समीक्षा के लिए चर्चा हुई। उन्होंने कहा, नेपाल-चीन संबंध और नेपाल-भारत संबंध खास हैं, जिनकी तुलना एक-दूसरे से नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों से किसी एक देश पर नेपाल की आर्थिक निर्भरता कम हुई है।

ओली ने कहा कि नेपाल ने चीन के साथ परिवहन एवं ट्रांजिट संधि पर दस्तखत किए ताकि दोनों सीमाओं में इसकी पहुंच हो। अब नेपाल के लोगों को भविष्य में वैसे संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा, जैसा सीमा बाधित किए जाने के समय करना पड़ता था।

उन्होंने कहा कि देश और लोगों के हित में नेपाल को अपने पड़ोसियों से बराबर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए। हम अपने दोनों पड़ोसियों की संवेदनशीलता का सम्मान करते हैं और हम उनसे भी ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं। ओली ने यह भी कहा कि '' हम अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं, लेकिन हम अपने अंदरूनी मामलों में दखल स्वीकार नहीं कर सकते।'' उन्होंने कहा कि नए संविधान के लागू होने में रोड़े अटकाने की खातिर उनकी सरकार गिराने की कोशिशें की गई।

अक्टूबर 2015 में ओली बने थे पीएम

पिछले 10 साल के दौरान बनी नेपाल की आठवीं सरकार की अगुआई करने के लिए ओली पिछले अक्टूबर में प्रधानमंत्री बने थे। गठबंधन सरकार से माओवादियों द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद ओली अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे थे।

अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए तैयार बैठे सांसदों से 64 साल के ओली ने कहा कि उन्होंने इस संसद में एक नए प्रधानमंत्री के चुनाव का रास्ता साफ करने का फैसला किया है, अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है।''

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ओली ने इस्तीफा उस वक्त दिया जब सत्ता में साझीदार दो अहम पार्टियों मधेसी पीपुल्स राइट्स फोरम-डेमोक्रेटिक और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की अगुआई वाली सीपीएन-माओइस्ट सेंटर की ओर से उनके खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का फैसला किया।

प्रचंड के क्या थे आरोप ?

इन पार्टियों ने ओली पर आरोप लगाया था कि उन्होंने पिछली प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं की। ओली की जगह लेने के लिए प्रबल दावेदार बताए जा रहे माओवादी प्रमुख प्रचंड ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया था कि वह अहंकारी और आत्मकेंद्रित हैं।

उन्होंने कहा कि 'इससे उनके साथ काम करते रहना संभव नहीं रह गया था। बहरहाल, 598 सदस्यों वाली संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए ओली ने प्रचंड एवं अन्य की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने देश के नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसियों जिनमें ज्यादातर भारतीय मूल के हैं, की शिकायतों के निदान के लिए वार्ता का समर्थन किया। मधेसियों ने कुछ महीने पहले प्रदर्शन शुरू किए थे जिससे भारत से वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई थी ।

मधेसियों पर ओली का बयान

ओली ने कहा कि आंदोलनकारी मधेसी पार्टियों की मांगों के मामले का निदान शांतिपूर्ण तरीकों से किया जा सकता है और उनकी मांगें पूरी करने के लिए संविधान में संशोधन किया जा सकता है। उन्होंने मधेसी पार्टियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि फिर से आंदोलन की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने देश को पीछे की तरफ खींचने के लिए रची जा रही साजिश के खिलाफ भी लोगों को आगाह किया ।

ओली ने कहा कि उनके इस्तीफे के देश पर दूरगामी परिणाम होंगे और इससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कई ऐसे मौके होते हैं जब सच बोलने वालों को दंडित किया जाता है और देशभक्ति के लिए खड़े होने वालों को सजा दी जाती है।

नेपाली संसद की गणित

ओली के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को नेपाली कांग्रेस के 183, सीपीएन-एमसी के 70 और सीपीएन-यूनाइटेड के तीन सांसदों का समर्थन प्राप्त था। संसद में तीनों पार्टियों के कुल 292 सांसद हैं। ओली की सीपीएन-यूएमएल के अभी 175 सांसद हैं, जो विश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए जरूरी 299 सीटों से काफी कम हैं।

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