पलोनजी परिवार को टाटा संस से बाहर निकालने की कोशिश
सूत्रों के मुताबिक टाटा समूह की गुरुवार को हुई अहम बैठक में कई विकल्पों पर विचार किया गया। इसमें एक विकल्प यह भी था कि शपूरजी पलोनजी की अहम हिस्सा खरीद कर उन्हें अल्पसंख्यक शेयरधारकों की श्रेणी में लाया जाए। समूह इसके लिए विदेशी सोवरेन फंड्स से बात कर रहा है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली । टाटा समूह ने बर्खास्त चेयरमैन साइरस मिस्त्री के आरोपों का करारा जवाब देने के बाद चुप नहीं बैठने वाला। बल्कि समूह से शपूरजी पलोनजी परिवार की पूरी हिस्सेदारी खरीदने की कोशिश भी की जा रही है। मिस्त्री शपूरजी पलोनजी परिवार के ही सदस्य हैं और यह परिवार टाटा समूह की प्रमुख कंपनी टाटा संस में सबसे ज्यादा 18.6 फीसद हिस्सेदारी रखती है। सूत्रों के मुताबिक अगर शपूरजी पलोनजी अपनी हिस्सेदारी बेचने को तैयार हो जाता है तो यह मौजूदा विवाद का सबसे बेहतरीन हल होगा क्योंकि अब यह साफ हो गया है कि जिस तरह से यह कॉरपोरेट विवाद में तब्दील हो गया है उससे इनके बीच आने वाले दिनों में सामंजस्य बिठाना मुश्किल होगा।
सूत्रों के मुताबिक टाटा समूह की गुरुवार को हुई अहम बैठक में कई विकल्पों पर विचार किया गया। इसमें एक विकल्प यह भी था कि शपूरजी पलोनजी की अहम हिस्सा खरीद कर उन्हें अल्पसंख्यक शेयरधारकों की श्रेणी में लाया जाए। समूह इसके लिए विदेशी सोवरेन फंड्स से बात कर रहा है। हालांकि यह सब कुछ शपूरजी पलोनजी परिवार के रुख पर निर्भर करेगा। अभी तक इस परिवार ने इस तरह की कोई इच्छा नहीं जताई है। साथ ही टाटा समूह के सामने दूसरी समस्या टाटा संस के शेयरों के मूल्यांकन को लेकर होगी।
मिस्त्री ने किया अक्षम्य अपराध : टाटा
टाटा संस सीधे तौर पर शेयर बाजार में सूचीबद्ध नहीं है लेकिन देशी व विदेशी शेयर बाजारों में दर्जनों कंपनियां सूचीबद्ध हैं। इस लिहाज से कंपनी का मूल्यांकन करने बहुत ही मुश्किल होगा। टाटा संस की सब्सिडियरी कंपनियों का कारोबार 80 देशों में फैला हुआ है और पिछले वर्ष इसे 106 अरब डॉलर का समूह बताया गया था।
सूत्रों के मुताबिक इतने बड़े उद्योग समूह के अहम शेयर धारकों के बीच होने वाला विवाद किसी के लिए भी अच्छा नहीं है। अगर मिस्त्री और टाटा के बीच वैमनस्यता यूं ही रहती है तो आने वाले दिनों में अहम फैसलों को लेकर भी दिक्कतें आ सकती हैं। सबसे बड़े हिस्सेदार होने के नाते शपूरजी पलोनजी फैसलों पर सवाल उठा सकता है। इससे कंपनी का कामकाज प्रभावित हो सकता है। ऐसे में समूह के हितों के लिए यही बेहतर होगा कि एक ही सोच रखने वाले ग्रूप के पास ही निर्णायक हिस्सेदारी हो। लेकिन यह भी देखना होगा कि इतनी बड़ी राशि के शेयरों को खरीदने के लिए कौन आगे आता है। टाटा समूह चाहती है कि कुछ सोवेरन फंड्स के समूहों को यह इक्विटी दी जाए ताकि अहम निर्णयों में खास अड़चन नहीं आये। साफ है कि टाटा समूह में शुरू हुआ विवाद फिलहाल सुलझता नहीं दिखता।