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...आदिवासियों के लिए बैंक की नौकरी छोड़ शुरू किया एनजीओ

मध्‍यप्रदेश के छोटे से गांव कोहका में आदिवासियों के लिए एक फरिश्‍ते के तौर पर आए शख्‍स ने वहां के बच्‍चों को शिक्षित करने का जिम्‍मा उठाया और इसके लिए उसने अपनी बैंक की नौकरी का भी मोह नहीं किया।

By Monika minalEdited By: Published: Wed, 04 Jan 2017 04:08 PM (IST)Updated: Wed, 04 Jan 2017 04:16 PM (IST)
...आदिवासियों के लिए बैंक की नौकरी छोड़ शुरू किया एनजीओ

कोहका (मप्र)(जेएनएन)। संजय नागर ने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ कोहका फाउंडेशन शुरू किया जो मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में सेकेंडरी स्कूल के छात्रों को शिक्षित करने में मदद करती है।

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एक छोटे से गांव की निवासी गीता के पास बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने में मदद के लिए संसाधन हैं। लेकिन एनजीओ कोहका फाउंडेशन के विभिन्न शिक्षण कार्यक्रमों का हिस्सा होने के कारण गीता के संभावनाओं में नाटकीय रूप से परिवर्तन हो गया। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय स्तर पर वह हैंडबॉल खेलने गयी और बोर्ड की परीक्षा में 70 फीसद अंक प्राप्त किए। आज वह जबलपुर के कॉलेज से ग्रेजुएशन की शिक्षा ले रही है। गीता रोल मॉडल है। फाउंडेशन के संस्थापक संजय नागर ने कहा उनके जीवन का उद्देश्य गीता जैसे रोल मॉडल बनाना है जो जिंदगी में बड़ी उपलब्धियां हासिल करेंगे। यह फाउंडेशन फिलहाल मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में संचालित हो रहा है जिसमें 25 गांव आते हैं जो 6 स्कूलों को शेयर कर रहे हैं।

सेकेंडरी स्कूल के छात्रों के लिए फाउंडेशन की ओर से कोचिंग उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि वे बोर्ड की परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करें। कुछ दिन पहले संजय की जिंदगी काफी अलग हुआ करती थी जब वो विदेशी बैंक में कार्यरत थे। अपने काम से राहत के लिए वे हमेशा पेंच नेशनल पार्क आया करते थे। यह क्षेत्र मध्य प्रदेश में कोहका के आदिवासी क्षेत्र के पास ही था। इस क्रम में वे यहां के माध्यमिक विद्यालय के संपर्क में आए।

मैंने अक्सर उस स्कूल में वालंटियरिंग करना शुरू कर दिया। बेंचों या जूतों की व्यवस्था करना या जो भी आवश्यकताएं थीं उसके लिए काम करना शुरू कर दिया। और समय के साथ स्कूल में मेरे प्रयास और समय सीमा बढ़ती गयी। एक ऐसा समय आ गया कि मेरी नौकरी की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण स्कूल बन गया।

इसलिए 6 साल पहले उन्होंने नौकरी छोड़ कोहका फाउंडेशन शुरू करने का निर्णय ले लिया। शुरू के चार साल तक उनका काम स्वयं के फंड से ही चलता रहा। फाउंडेशन की ओर से 8वीं से 12वीं के छात्रों के लिए कोचिंग क्लासेज चलाए जाते हैं जो रविवार को चार घंटे की होती है और बाकी दिन स्कूल शुरू होने से पहले।

फाउंडेशन का विशेष फोकस सेंकेंडरी स्कूल एजुकेशन पर है क्योंकि संजय के अनुसार अधिकांश छात्र इसमें ही असफल होते हैं। 8वीं कक्षा तक स्कूल में कोई परीक्षा का प्रावधान नहीं है और इसलिए छात्रों को प्रमोशन दे दिया जाता है लेकिन 9वीं कक्षा की परीक्षाओं में वे फेल हो जाते हैं। संजय ने बताया, ‘हमारा उद्देश्य उनके बोर्ड परीक्षा में सफल बनाना और ग्रेजुएशन तक ले जाना है।‘

संजय को फाउंडेशन शुरू करने के बाद अधिक मुश्किलों का सामना तब करना पड़ा जब इसके बारे में उन्हें छात्रों व माता-पिता को समझाना पड़ा। संजय ने बताया, ‘शुरुआत में वे सब मेरे बारे में आश्चर्य कर रहे थे। वे मेरा इरादा नहीं समझ रहे थे और संभवत: एहतियात बरत रहे थे। उन्हें विश्वास दिलाने के लिए काफी प्रयास करने पड़े।‘ और उनका प्रयास अभी भी जारी है क्योंकि संजय के लिए अपने कार्यक्रम में वहां के पैरेंट्स को शामिल करना अभी भी काफी मुश्किल है।

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