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38 शहरों को भूकंप से बचाने की कागजी योजना

भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकारी एजेंसियों का अभी तक का रवैया कैसा रहा है इसका सबसे बड़ा उदाहरण जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन के तहत भूकंप सहने वाले मकान बनाने की योजना है। इस योजना के तहत तीन दर्जन से ज्यादा शहरों में भूकंप रोधी मकानों

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 27 Apr 2015 08:12 PM (IST)Updated: Mon, 27 Apr 2015 09:15 PM (IST)
38 शहरों को भूकंप से बचाने की कागजी योजना

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकारी एजेंसियों का अभी तक का रवैया कैसा रहा है इसका सबसे बड़ा उदाहरण जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन के तहत भूकंप सहने वाले मकान बनाने की योजना है। इस योजना के तहत तीन दर्जन से ज्यादा शहरों में भूकंप रोधी मकानों के निर्माण के कार्य को वरीयता देने की बात थी लेकिन कई वर्ष बीतने के बाद भी यह योजना कागजों में ही सिमटी है। इस योजना का हश्र बताता है कि जब देश में कोई आपदा आती है तो सरकारी एजेंसियां योजना बनाने में जुट जाती हैं लेकिन समय बीतने के साथ ही उस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।

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योजनाओं के अमल का कोई उपाय नहीं

जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन में भूकंप सहने वाले मकान बनाने की योजना के साथ ही 38 शहरों के लिए अर्बन अर्थक्वेक वलनरबिलिटी रिडक्शन प्रोजेक्ट की प्रगति भी काफी खराब है। असलियत में इन दोनों योजनाओं की प्रगति सिर्फ कागजों में दिखाई देती है। दरअसल, इन योजनाओं को कैसे अमलीजामा पहनाया जाएगा, इसको लेकर सरकार अंधेरे में हैं। केंद्र में नई सरकार के आने के बाद भी हालात में बहुत बदलाव नहीं हुए हैं। बार-बार केंद्र की तरफ से राज्यों को भूकंप से बचने के लिए तमाम उपाय करने पर सुझाव देने की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है। लेकिन इसे कैसे अमल में लाया जाए या इसको लेकर क्या प्रगति हो रही है, इसकी कोई निगरानी नहीं होती।

बिल्डर उड़ा रहे नियमों की धज्जियां

राज्य सरकारों की भूमिका भी कम चिंताजनक नहीं है। इस बारे में केंद्र की तरफ से बुलाई गई बैठक में काफी वादे किए जाते हैं लेकिन जमीनी तौर पर भूकंप से बचने के लिए होने वाले उपायों की पूरी तरह से अनदेखी की जाती है। लिहाजा बिल्डर धड़ल्ले से नियम कायदों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी से लेकर देहरादून, लखनऊ, पटना, कानपुर जैसे तमाम शहरों में सिंगल प्लाट पर बनने वाले बहुमंजिला इमारत किसी प्राकृतिक आपदा में मौत का कुंआ साबित हो सकते हैं। उत्तर भारत के अधिकांश शहर खतरनाक सेस्मिक जोन (भूकंप संभावित क्षेत्र) में है।

दिल्ली, अमृतसर, जालंधर, मेरठ, पटना, जम्मू, देहरादून व यमुनानगर जोन-4 में

सन् 2005 में भूकंप से हिलने वाला श्रीनगर, गुवाहाटी के साथ सबसे अधिक भूकंप की आशंका वाले सेस्मिक जोन-5 में है। सेस्मिक जोन-4 में फंसी दिल्ली के साथ अमृतसर, जालंधर, मेरठ, पटना, जम्मू, देहरादून और यमुनानगर हैं। साफ है कि चारों महानगरों में से सबसे ज्यादा खतरे में दिल्ली है। कानपुर, लखनऊ, बरेली, वाराणसी, इंदौर, आगरा व अहमदाबाद समेत 28 शहर सेस्मिक जोन-3 में हैं। सरकार ने भूकंप की आशंका के मुताबिक सभी शहरों के लिए योजना बनाई थी लेकिन अमल अभी तक नहीं हो पाया। पहले चरण में पांच लाख से ज्यादा आबादी वाले भूकंप संभावित शहरों को चुना गया था। इसके अलावा पिछले 100 वर्षो के भीतर सात रिक्टर स्केल पर भूकंप देख चुके कांगड़ा, किन्नौर, मणिपुर-म्यांमार सीमा, असम, कच्छ, भुज, मणिपुर, असम, बिहार-नेपाल सीमा, सोपोर, उत्तरकाशी, चमोली, जबलपुर जैसे शहरों के लिए अलग से योजना तैयार करने की बात तब कही गई थी।

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