राज्यों के प्रदर्शन से तय होंगी नई ट्रेनें
सहकारी संघवाद की नई परिभाषा गढ़ रही मोदी सरकार ने रेल के मामले में राज्यों को दो टूक संदेश दिया है।
नई दिल्ली । सहकारी संघवाद की नई परिभाषा गढ़ रही मोदी सरकार ने रेल के मामले में राज्यों को दो टूक संदेश दिया है। यह संदेश है रेल परियोजना देने में या नई ट्रेनों के मामले में उन्हीं राज्यों की सुनी जाएगी जो रेलवे विस्तार की परियोजना को लागू करने में केंद्र की मदद करेंगे। सरकार का यह कदम आने वाले दिनों नई ट्रेनों की घोषणा करने में होने वाली राजनीति की संभावना को खत्म कर देगी। साथ ही राज्य सरकारों को रेलवे ढांचा को बेहतर करने का अवसर भी मुहैया कराएगा।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने परंपरा से हटते हुए किसी भी नई ट्रेन की घोषणा नहीं की है। पिछले कई वर्षो से रेल मंत्रियों के लिए कार्यकाल की सफलता मापने का सबसे बड़ा पैमाना नई ट्रेनों की घोषणा होती रही है। पिछले कुछ वर्षो में औसतन हर वर्ष 60 से 100 नई ट्रेनों की घोषणा होती रही हैं। इनमें से कई ट्रेनें शुरू नहीं होतीं। इसका असर यह हुआ है कि कई क्षेत्रों में ट्रेनें तो ज्यादा हो गई हैं, लेकिन उससे पूरी रेल परिवहन व्यवस्था गड़बड़ हो गई है। प्रभु ने कहा कि नई ट्रेनों के परिचालन की घोषणा की समीक्षा जल्द पूरी हो जाएगी, उसके बाद ही फिर से नई ट्रेनों को चलाने पर फैसला होगा।
रेल मंत्री का यह फैसला सरकार की नई नीति का हिस्सा है। जिस तरह से संसाधनों के बंटवारे में पहले ही मोदी सरकार राज्यों को उनके प्रदर्शन को प्रमुख मानक बनाने की घोषणा कर चुकी है। अब रेलवे में भी यही फार्मूला लागू किया जाएगा। सिर्फ नई ट्रेनों की घोषणा ही नहीं बल्कि अन्य रेलवे परियोजनाओं में भी राज्यों की भूमिका बढ़ेगी।
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