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सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना के आंकड़े हुए पेश

मोदी सरकार ने शुक्रवार को सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों में जातिगत आधारित जनगणना के आंकड़े शामिल नहीं थे। इस तरह के आंकड़े वर्ष 2011 में हुई जनगणना के दौरान पेश किए गए थे। इसकी जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह आंकड़े

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2015 10:59 AM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2015 01:05 PM (IST)
सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना के आंकड़े हुए पेश

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने शुक्रवार को सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों में जातिगत आधारित जनगणना के आंकड़े शामिल नहीं थे। इस तरह के आंकड़े वर्ष 2011 में हुई जनगणना के दौरान पेश किए गए थे। इसकी जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह आंकड़े बेहद अहम है।

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आंकड़े पेश करते हुए जेटली ने दावा किया कि यह एक शानदार दस्तावेज होगा। इससे भारत की हकीकत पता चलेगी। उल्लेखनीय है कि 1929 के बाद पहली बार इस तरह की जनगणना की गई। इसमें 17.9 करोड़ घरों की जानकारी अब सरकार के पास है।

सामाजिक, आर्थिक और जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों से सरकार को योजनाएं बनाने में काफी मदद मिलेगी। सरकार का कहना है कि इस तरह की जनगणना से यह पता चल सकेगा कि समाज में किस तबके की भागीदारी कितनी है और उसे किस तरह की योजनाओं की जरूरत है। गरीबी रेखा से नीचे रह रही आबाद की हालत सुधारने में भी मदद मिलेगी।

जाति आधारित जनगणना कराए जाने की घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 7 मई, 2010 को लोकसभा में की थी। तब पक्ष और विपक्ष के सभी दलों और सांसदों ने एक राय से 2011 की जनगणना में जाति को जोड़ने की मांग की थी। लेकिन आज केंद्रीय मंत्री जेटली ने इस तरह के आंकड़े जारी करने से साफ इंकार कर दिया।


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