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आतंकी फंडिंग पर बेनकाब हो गया पाक, अमेरिका का भी भरोसा उठा

एफएटीएफ मापदंड के अनुरूप आतंकी फंडिंग रोकने में विफल रहने पर पाकिस्तान पर लग सकते हैं कई तरह के प्रतिबंध कसा घेरा

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 24 Jun 2017 12:53 PM (IST)Updated: Sat, 24 Jun 2017 01:19 PM (IST)
आतंकी फंडिंग पर बेनकाब हो गया पाक, अमेरिका का भी भरोसा उठा
आतंकी फंडिंग पर बेनकाब हो गया पाक, अमेरिका का भी भरोसा उठा

नई दिल्ली, (नीलू रंजन)। आतंकी फंडिंग के मामले में पाकिस्तान दुनिया के सामने बेनकाब हो गया है। आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की रिपोर्ट में पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित आतंकी संगठनों व व्यक्तियों के वित्तीय लेन-देन पर रोक नहीं लगाने का दोषी पाया गया है। भारत ने एफएटीएफ में पाकिस्तान में आतंकियों को मिल रही फंडिंग का मुद्दा उठाया था।

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स्पेन में 18 से 23 जून तक हुई एफएटीएफ की प्लेनरी बैठक में पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को मिल रही फंडिंग पर रिपोर्ट पेश की गई। इसमें कहा गया है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ से प्रतिबंधित आतंकी संगठन पाकिस्तान में खुलेआम सक्रिय हैं और आर्थिक लेन-देन कर रहे हैं। पाकिस्तान इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। सभी सदस्य देशों ने पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का मामला इंटरनेशनल कोऑपरेशन रिव्यू ग्रुप (आइसीआरजी) को सौंप दिया। बाद में आइसीआरजी ने एशिया पैसिफिक ग्रुप (एजीपी) को एक महीने के भीतर पाकिस्तान द्वारा आतंकी फंडिंग रोकने के लिए उठाए गए कदमों की रिपोर्ट देने को कहा है। ताकि जुलाई में होने जा रही एजीपी की वार्षिक बैठक में इस पर चर्चा की जा सके।

एजीपी के रिपोर्ट नहीं देने की स्थिति में आइसीआरजी ने पाकिस्तान को सीधे उसे रिपोर्ट देने को कहा कि उसने आतंकी फंडिंग रोकने के लिए क्या उपाय किए हैं। एफएटीएफ मापदंड के अनुरूप आतंकी फंडिंग रोकने में विफल रहने की स्थिति में पाकिस्तान को कई तरह से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।

दरअसल, पाकिस्तान लंबे समय से दुनिया को दिखाने की कोशिश करता रहा है कि वह खुद आतंकवाद से पीड़ित है और उसे खत्म करने के सारे प्रयास कर रहा है। भारत ने पिछले साल अक्टूबर में भी पेरिस में हुई एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान में आतंकी संगठनों को हो रही भारी फंडिंग का मुद्दा उठाया था। भारत का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र से अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों की सूची में डाले गए लश्कर-ए-तैयबा, जमात-उद-दावा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं और आतंकी हमलों के लिए फंड इकट्ठा कर रहे हैं। इसके लिए भारत ने कई दस्तावेज भी प्रस्तुत किए थे। भारत के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए एफएटीएफ ने इसकी जांच का फैसला किया और एशिया पैसिफिक ग्रुप को इस पर तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा। लेकिन एशिया पैसिफिक ग्रुप के सदस्यों को पाकिस्तान प्रभावित करने में सफल रहा और रिपोर्ट तैयार नहीं होने दी।

इसके बाद भारत ने फरवरी में एफएटीएफ की बैठक में फिर यह मुद्दा उठाया तो पाकिस्तान की ओर से इसका तीखा विरोध हुआ। पाकिस्तान की कोशिश थी कि इस मुद्दे को तकनीकी पहलुओं में उलझा दिया जाए। लेकिन, अमेरिका और यूरोपीय देशों के भारत के प्रस्ताव पर मिले समर्थन से पाकिस्तान की मंशा सफल नहीं हो सकी। एफएटीएफ बैठक की अध्यक्षता कर रहे स्पेन के वेगा सेरानो ने पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग पूरी तरह रोकने के लिए तीन महीने का नोटिस थमा दिया।

पाकिस्तान से हटा अमेरिकी भरोसा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के ठीक दो दिन पहले वहां की संसद में पाकिस्तान से किनारा करने के लिए एक विधेयक पेश किया है। एचआर 3000 नाम का यह विधेयक पाकिस्तान से गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा छीनने के संबंध में हैं। यदि यह बिल पारित हो जाता है तो आतंकवाद से लड़ने के नाम पर पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली मोटी रकम पर अंकुश लग जाएगा। सैन्य मदद भी रुकेगी। 


पाकिस्तान के अलावा इन देशों को मिला ऐसा दर्जा

ऑस्ट्रेलिया, मिस्र, इजरायल, जापान, दक्षिण कोरिया, जॉर्डन, न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना, बहरीन, फिलीपींस, थाईलैंड, कुवैत, मोरक्को, अफगानिस्तान, ट्यूनीशिया

बुश सरकार ने दिया दर्जा

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 2001 में हुए आतंकी हमले के बाद तालिबान को नेस्तनाबूद करने में अमेरिका को पाकिस्तान की मदद चाहिए थी। लिहाजा तत्कालीन जार्ज डब्ल्यू बुश सरकार ने 2004 में उसे गैर नाटो सहयोगी का दर्जा दिया जिससे वह पाकिस्तान को सैन्य बेस बनाकर अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ सके।

रणनीतिक साझेदारी

गैर नाटो सहयोगी का दर्जा एक प्रकार की रणनीतिक साझेदारी है। इसका मतलब है कि अमेरिका अपने गैर नाटो सहयोगी को सैन्य व वित्तीय सहयोग में औरों की तुलना में अधिक तवज्जो देता है। ऐसे सहयोगियों के सैन्य संसाधनों का भरपूर प्रयोग करता है। इसके एवज में उन्हें वित्तीय और सैन्य मदद उपलब्ध कराता है। 

अरबों की वसूली

दर्जे का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने 2004 से लेकर 2010 के बीच अमेरिका से करीब 18 अरब डॉलर की मदद ली। इसके अलावा अमेरिका ने पाकिस्तान को अत्याधुनिक हथियार खरीदने और विकसित करने में सहयोग भी दिया। 

हथियार बनाना होगा मुश्किल

गैर नाटो सहयोगी का दर्जा यह भी कहता है कि अमेरिका न सिर्फ पाकिस्तान को सैन्य मदद देगा बल्कि शोध-अनुसंधान, परमाणु और अंतरिक्ष तकनीक में भी सहायता करेगा। अगर दर्जा छिनता है तो पाकिस्तान के लिए अत्याधुनिक हथियार बनाना और मुश्किल हो जाएगा।


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