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डीसीआइ के अध्यक्ष मजूमदार पर सीबीआई ने दर्ज की एफआईआर

सीबीआइ की एफआइआर के बाद से ही मजूमदार को हटाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय पर दवाब बनना शुरू हो गया था

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Tue, 02 May 2017 08:38 PM (IST)Updated: Tue, 02 May 2017 08:38 PM (IST)
डीसीआइ के अध्यक्ष मजूमदार पर सीबीआई ने दर्ज की एफआईआर
डीसीआइ के अध्यक्ष मजूमदार पर सीबीआई ने दर्ज की एफआईआर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। डेंटल कौंसिल आफ इंडिया (डीसीआइ) के अध्यक्ष दिब्येंदु मजूमदार की कुर्सी खतरे में पड़ गई है। फर्जीवाड़ा कर डीसीआइ का अध्यक्ष बनने के सीबीआइ के आरोपों पर एक तरह से झारखंड हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। अध्यक्ष बनने के लिए उन्होंने खुद को पलामू के नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय से जुड़े एक कालेज का विजिटिंग प्रोफेसर बताया था, लेकिन विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट को बताया कि मजूमदार उनके यहां कभी विजिटिंग प्रोफेसर थे ही नहीं।

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डीसीआइ के नियम के मुताबिक अध्यक्ष वही बन सकता है, जो उसका सदस्य हो और सदस्य होने के लिए किसी विश्वविद्यालय के मान्यता प्राप्त डेंटल कालेज में प्रोफेसर होना जरूरी होता है। मजूमदार का अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल 31 मई 2015 को खत्म हो रहा था और साथ ही उनकी सदस्यता भी खत्म हो रही थी। आरोप है कि दोबारा सदस्य बनने के लिए मजूमदार ने बड़ी साजिश रची। इसके लिए उन्होंने झारखंड के गढ़वा स्थित वनांचल डेंटल कालेज व अस्पताल की बीडीएस सीटें दोगुनी करने की अनुमति दे दी। जबकि विशेषज्ञ समिति ने इस कालेज में कई तरह की कमी होने की रिपोर्ट थी।

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अध्यक्ष के रूप में उन्होंने इस रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया। इसके साथ ही मजूमदार ने कालेज को एमडीएस की सीटें भी दे दी। बदले में कालेज ने उन्हें अपने यहां विजिटिंग प्रोफेसर दिखा दिया और पलामू के नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय के कुलपति फिरोज अहमद से इसपर मुहर भी लगवा ली। विजिटिंग प्रोफेसर का तमगा मिलने के बाद वे नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय की ओर से डीसीआइ का सदस्य बन गए। खास बात यह है कि डीसीआइ के सदस्य सचिव एसके ओझा सारे तथ्यों से अवगत होने के बावजूद मजूमदार को दोबारा अध्यक्ष बनने दिया।

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इस मामले में सीबीआइ मजूमदार के खिलाफ फरवरी में ही एफआइआर दर्ज कर चुकी है। सीबीआइ की एफआइआर के अनुसार मजुमदार कभी भी उस कालेज में विजिटिंग प्रोफेसर नहीं रहे हैं। सीबीआइ की एफआइआर के बाद मजूमदार ने राहत पाने के लिए झारखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।

सीबीआइ की एफआइआर के बाद से ही मजूमदार को हटाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय पर दवाब बनना शुरू हो गया था और इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री को की ज्ञापन भी सौंपे गए थे। लेकिन उस समय मामला हाईकोर्ट के विचाराधीन होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो पाई थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद मजूमदार के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया है।


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