सब्सिडी नीति पर बढ़ीं ड्रैगन की मुश्किलें
सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद मोदी सरकार ने साफ कर दिया था कि विदेश नीति को लेकर भारत अब किसी बाहरी दबाव में नहीं रहेगा। आम बजट ने मोदी सरकार के इस दृष्टिकोण को और मजबूत किया है। चीन की चिंताओं को दरकिनार कर भारत ने ‘लुक
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। सत्ता में आने के कुछ ही दिनों बाद मोदी सरकार ने साफ कर दिया था कि विदेश नीति को लेकर भारत अब किसी बाहरी दबाव में नहीं रहेगा। आम बजट ने मोदी सरकार के इस दृष्टिकोण को और मजबूत किया है। चीन की चिंताओं को दरकिनार कर भारत ने ‘लुक ईस्ट’ नीति की जगह ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को अपनाने को बढ़ावा दिया है। यह माहौल बनाने को ही नहीं, बल्कि भारतीय कंपनियों को कुछ चयनित दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में फैक्ट्री लगाने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।
भारत के इस कदम को एक बड़ा स्टेटमेंट माना जा रहा है। चीन लगातार भारत की दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में बढ़ रही गतिविधियों पर नाराजगी जाहिर करता रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक, ‘भारत एक्ट ईस्ट नीति के तहत दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ गहरे आर्थिक व राजनीतिक संबंध बनाना चाहता है। इसके लिए निजी कंपनियों को कंबोडिया, म्यांमार, लाओस और वियतनाम में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। भारत सरकार एक विशेष कंपनी गठित करेगी जो निजी क्षेत्र की कंपनियों को वहां निवेश में आर्थिक मदद देगी।’ भारत पहली बार दूसरे देशों में निवेश के लिए इस तरह के प्रबंध कर रहा है, जहां सरकार के समर्थन से एक विशेष कंपनी का गठन हो रहा है। एक तरह से यह निजी कंपनियों को सब्सिडी होगी कि वे उक्त चारों देशों में पैसा लगाएं। चीन भले ही आगे चल कर इस फैसले पर भृकुटियां ताने लेकिन हकीकत यह है कि वहां की सरकार भी इस तरह से अपनी कंपनियों को दूसरे मुल्कों में निवेश के लिए प्रोत्साहित करती रही है। जिन चारों देशों का चयन किया गया है, उन्हें कम लागत वाले निर्माण स्थल के तौर पर देखा जा रहा है। अब जबकि चीन में निर्माण की लागत बढ़ रही है, वहां की कंपनियां इन चारों देशों में जाना चाहती हैं लेकिन यहां की सरकारें चीन को लेकर हमेशा सशंकित रहती हैं।
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