वित्त मंत्री ने विश्व बैंक में सुधारों पर जोर दिया
भारत ने विश्व बैंक ग्रुप की हिस्सेदारी व्यवस्था में सुधारों पर जोर दिया है ताकि विश्व अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों का हिस्सा इनमें परिलक्षित हो। इसके साथ ही उसने विश्व बैंक की पूंजी में उल्लेखनीय वृद्धि की मांग की है ताकि विकास के लिए ऋण की जरूरतों को पूरा किया
लीमा। भारत ने विश्व बैंक ग्रुप की हिस्सेदारी व्यवस्था में सुधारों पर जोर दिया है ताकि विश्व अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों का हिस्सा इनमें परिलक्षित हो। इसके साथ ही उसने विश्व बैंक की पूंजी में उल्लेखनीय वृद्धि की मांग की है ताकि विकास के लिए ऋण की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने लीमा में आयोजित विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की विकास समिति के पूर्ण अधिवेशन को संबोधित करते हुए यह जरूरत व्यक्त की। उन्होंने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के लिए वित्तपोषण तथा योजनाओं के क्रियान्वयन में विश्व बैंक की भूमिका बढाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। यह समिति विकास संबंधी मामलों पर विश्व बैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की मंत्री स्तरीय समिति है जो विकास के मुद्दों पर सर्वसम्मत राय बनाने का प्रयास करती है। जेटली ने इस बैठक में भारत के साथ साथ श्रीलंका, बांग्लादेश व भूटान का प्रतिनिधित्व किया।
जेटली ने इस बात पर जोर दिया कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों के लिए सालाना 100 अरब डालर संसाधन जुटाने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ये संसाधन नये व अतिरिक्त शुल्कों से जुटाए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि वि बैंक द्वारा प्रस्तावित ‘पर्यावरण व सामाजिक व्यवस्था’ पर चर्चा के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रस्तावित व्यवस्था व्यावहारिक, क्रियान्वयन में सुविधाजनक तथा समय व साधन की दृष्टि से वहनीय हो।
जेटली ने कहा कि भारत, बांग्लादेश और भूटान शीघ फल देने वाले देश हैं और वे अपनी जनसंख्या संबंधी विशेषताओं का इस्तेमाल कर सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के कदम उठा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘कार्यकारी निदेशकों और विश्व बैंक को सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में वित्त की आवश्यकता का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना चाहिए। मुझे पक्का भरोसा है कि इस तरह के आकलन से विश्व बैंक समूह की पूंजी में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता महसूस होगी ताकि विकास के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।’
उन्होंने कहा, ‘मैं चाहूंगा कि ये संसाधन नए एवं अतिरिक्त सोतों से जुटाए जाएं न कि गरीबी व साझा समृद्धि के लिए दी जाने वाली सरकारी विकास सहायता को काटकर। आईबीआरडी (विश्वबैंक) की ओर से मिलने वाली वह सहायता जो गैर रियायती है और जो दानदाता देशों के संसाधनों से नहीं आती है, उसे 100 अरब डालर के प्रवाह में नहीं गिना जाना चाहिए।’
वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने ट्विटर पर कहा, ‘भारत ने दोनों संस्थाओं -विश्व बैंक और मुद्राकोष की संचालन व्यवस्था में सुधार की मांग की है ताकि विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में विकासशील देशों की बढ़ती हिस्सेदारी इन संस्थानों में परिलक्षित हो। वह भी विश्वबैंक-मुद्राकोष बैठक में शामिल होने आए हैं।
जेटली ने कहा, ‘हालांकि मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि हमारे क्षेत्र के देश वैश्विक नरमी के रझानों के विपरीत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और उनकी आर्थिक वृद्धि दर अपेक्षाकृत अच्छी रहेगी जिसमें भारत की वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत, बांग्लादेश की 6.3 प्रतिशत, श्रीलंका की 6.5 प्रतिशत और भूटान की 7 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।’
वर्ष 2015 के लिए महज 4.3 प्रतिशत की वृद्धि दर के अनुमान के साथ विकासशील देशों के लिए परिदृश्य कुल मिलाकर खराब हुआ है।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘विकासशील देशों के लिए सतत रूप से बढ़ने और समृद्धि प्राप्त करने के लिए मजबूत एवं समावेशी वृद्धि दर हासिल करना जरूरी है। सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने एवं विश्व बैंक के दोहरे लक्ष्यों के लिए भी इस तरह की वृद्धि आवश्यक है।’
सतत विकास के लक्ष्यों को महत्वाकांक्षी करार देते हुए उन्होंने कहा कि इसको प्राप्त करने के लिए कर्ज और क्रि यान्वयन की महत्वाकांक्षी योजनाओं की जरूरत है।
विश्व बैंक को मानव संसाधन विकास, आर्थिक वृद्धि, रोजगार और सामाजिक भागीदारी पर काम करने की जरूरत है।