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दिल्ली चुनाव तय करेगा आर्थिक सुधारों का भविष्य

मोदी सरकार आर्थिक सुधारों पर वैसे तो दो टूक फैसला कर रही है लेकिन दिल्ली विधान सभा चुनावों के परिणाम आने वाले दिनों में कुछ अहम सुधारों से जुड़े फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं। खास तौर पर मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों के प्रवेश और श्रम सुधार जैसे

By Sudhir JhaEdited By: Published: Sun, 01 Feb 2015 09:13 PM (IST)Updated: Sun, 01 Feb 2015 09:35 PM (IST)
दिल्ली चुनाव तय करेगा आर्थिक सुधारों का भविष्य

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। मोदी सरकार आर्थिक सुधारों पर वैसे तो दो टूक फैसला कर रही है लेकिन दिल्ली विधान सभा चुनावों के परिणाम आने वाले दिनों में कुछ अहम सुधारों से जुड़े फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं। खास तौर पर मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों के प्रवेश और श्रम सुधार जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार को फैसला करना हैं। ऐसे में आर्थिक सुधारों को लेकर दिल्ली सरकार का रवैया केंद्र की नीतियों पर भी काफी असर डालेगा।

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आम आदमी पार्टी (आप) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह रिटेल में एफडीआइ के खिलाफ है। यानी अगर उसकी सरकार बनती है तो वह दिल्ली में खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को छोड़ कौन कहे देसी कंपनियों को भी आने के लिए हतोत्साहित करेगी। देश की राजधानी में ही जब संगठित रिटेल का विरोध हो रहा हो तो केंद्र सरकार के लिए इसके पक्ष में देश भर में माहौल बनाना मुश्किल होगा। सनद रहे कि राजग सरकार के दूसरे दौर के आर्थिक सुधारों के तहत मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ को मंजूरी देने की इच्छा रखती है। इसको लेकर सरकार पर अमेरिका का काफी दबाव भी है लेकिन जब देश की राजधानी में ही इसका विरोध होगा तो सरकार के लिए इस बारे में फैसला करना मुश्किल होगा।

वैसे पीएम मोदी परोक्ष तौर पर यह संकेत दे चुके हैं कि वह मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी कंपनियों के प्रवेश के विरोध में नहीं है। हाल ही में प्रधानमंत्री के करीबी माने जाने वाले अर्थशास्त्री जगदीश भगवती ने भी इस बारे में बयान दिया था। मल्टी ब्रांड एफडीआइ के अलावा मोदी सरकार की मंशा श्रम सुधारों को भी आगे बढ़ाना चाहती है। इन दोनों मुद्दों पर अगर केंद्र को दिल्ली सरकार से समर्थन नहीं मिलेगा तो फैसला करना मुश्किल होगा।

दिल्ली चुनाव परिणाम का असर भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन लागू करने पर भी पड़ेगा। राजग सरकार ने हाल ही में इसमें कई अहम बदलाव किए हैं। अब इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों पर है लेकिन आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। जाहिर है कि आप की सरकार दिल्ली में बनी तो भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून को यहां लागू कराना भी केंद्र के लिए मुश्किल काम साबित हो सकता है।

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