आज है नरक चतुर्दशी, जानिए क्या है परंपरा
आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली कहा जाता है। इस दिन देवालयों में तथा घर में दीपदान करने की परंपरा है। ज्योतिर्विद पं. अजय कुमार द्विवेदी के अनुसार, दीपदान का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 32 मिनट से लेकर रात्रि 7 बजकर 5
आज कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, जिसे नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली कहा जाता है। इस दिन देवालयों में तथा घर में दीपदान करने की परंपरा है।
शुभ मुहूर्त
ज्योतिर्विद पं. अजय कुमार द्विवेदी के अनुसार, दीपदान का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 32 मिनट से लेकर रात्रि 7 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। पं. द्विवेदी के अनुसार, यह पौराणिक मान्यता है कि राजा बलि ने भगवान के वामन अवतार से यह प्रार्थना की थी कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी सहित तीन दिनों (धनतेरस से दीपावली) तक जो भी व्यक्ति यमराज के निमित्त दीपदान करे, उसे यम यातना न हो और इन तीन दिनों में दीपदान करने वाले का घर लक्ष्मी कभी न छोड़ें। भगवान ने यह वचन दिया कि इन दिनों में जो भी दीपोत्सव मनाएगा, उसे छोड़कर लक्ष्मी नहीं जाएंगी।
ज्योतिषी पं. द्विवेदी के अनुसार, इस दिन प्रदोष काल की बेला में देवालयों में दीपदान के पश्चात घर में दीपदान करना चाहिए, जिसका शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 32 मिनट से रात 7 बजकर 58 मिनट तक है। चूंकि इस दिन हनुमान जयंती भी है, अत: हनुमान जी की पूजा, ध्यान और उपासना का भी प्रावधान है।
दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पवरें की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीये की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
क्या है इसकी कथा-
इस रात दीये जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्दरंत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया।
इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।