भरोसा रखें
आरक्षण के खिलाफ न्यायालय जाने वालों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए और अदालत वही कर रही है। दुर्भाग्य से आरक्षण के लिए संघर्षरत वरिष्ठ नेता भी लोगों को समझाने-बुझाने के बजाय उत्तेजना फैलाने वाले बयान दे रहे हैं।
हरियाणा में जाटों समेत छह जातियों को बीसी सी श्रेणी के तहत दिए गए आरक्षण पर पंजाब एवं हाईकोर्ट के अंतरिम रोक पर जिस तरह बयानबाजी हो रही है, वह कतई उचित नहीं है। प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित समय का इंतजार किए बगैर यथाशीघ्र अर्जी लगाने की बात कही है। अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने भी हाईकोर्ट में अर्जी दायर कर अनुरोध किया है कि इस संबंध में कोई भी फैसला लेते वक्त उसका पक्ष भी सुना जाए। यह सब बिल्कुल जायज और उचित कार्रवाई है और इससे किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। हर शांतिप्रिय समाज चाहता है कि कानून का राज हो। मगर यह तभी संभव है, जब हर नागरिक कानून का सम्मान करे।
अगर उसके साथ अन्याय हो रहा है तो कानून का रास्ता अख्तियार करे और उचित जगह अपनी बात रखे। कानून के शासन का मतलब ही यही होता है कि किसी के साथ भेदभाव या अन्याय न हो। सभी को उसका अधिकार और सम्मान मिले। मगर, आरक्षण की व्यवस्था पर हाई कोर्ट के अंतरिम रोक लगने के बाद जिस तरह प्रतिक्रिया आई है, उससे नहीं लगता कि कुछ लोगों को कानून पर भरोसा या उसके प्रति सम्मान है। कम से कम इतना तो समझना चाहिए कि यह अंतरिम रोक है, अंतिम फैसला नहीं। फिर हड़बड़ी किस बात की है।
अगर आरक्षण के अधिकार के लिए वर्षो संघर्ष किया गया तो उसे उचित स्वरूप देने के लिए कुछ और समय देने में क्या हर्ज है? निश्चित रूप से हाई कोर्ट के फैसले से तात्कालिक रूप से कुछ लोग प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन उनके साथ भी अदालत अनुचित नहीं होने देगी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाट आरक्षण पर रोक लगाने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल कुछ अभ्यर्थियों के हित प्रभावित हुए थे, लेकिन बाद में उन्हें भी मौका मिला। इसलिए धैर्य खोने के बजाय संयम से काम लेने की जरूरत है।
आरक्षण के खिलाफ न्यायालय जाने वालों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए और अदालत वही कर रही है। दुर्भाग्य से आरक्षण के लिए संघर्षरत वरिष्ठ नेता भी लोगों को समझाने-बुझाने के बजाय उत्तेजना फैलाने वाले बयान दे रहे हैं। इससे आरक्षण समर्थक और विरोधी, दोनों पक्ष एक बार फिर आमने-सामने होते दिख रहे हैं। कुछ माह पूर्व ऐसी ही बयानबाजी ने प्रदेश को उन्माद की आग में झोंक दिया, जिसका हस्र हम देख चुके हैं। पिछले अनुभव को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि सभी समझदारी से काम लें।
(स्थानीय संपादकीय, हरियाणा)