फिल्म रिव्यू: 'रमन राघव 2.0', क्रूर हकीकतों का अफसाना (4 स्टार)
यह फिल्म एक शख्स से प्रेरित मनोरोगी सीरियल किलर रमन्ना की कहानी है। वह संगदिल, विक्षिप्त, पथ भ्रष्ट और चरित्रहीन है। वह सामूहिक हत्याएं तक करता है।
अमित कर्ण
प्रमुख कलाकार-नवाजुद्दीन सिद्दीकी, विक्की कौशल, शोभिता धुलिपाला
निर्देशक-अनुराग कश्यप
स्टार-4
1969 में मुंबई में रमन राघव नामक कुख्यात हत्यारे ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया था। उसने तकरीबन 41 हत्याएं कर शहर में दहशत का माहौल बना दिया था। यह फिल्म उस शख्स से प्रेरित मनोरोगी सीरियल किलर रमन्ना की कहानी है। वह संगदिल, विक्षिप्त, पथ भ्रष्ट और चरित्रहीन है। वह सामूहिक हत्याएं तक करता है। रक्तपात करने में उसे अपार संतोष मिलता है। अखबार में नाम आने पर खुद पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करता है। वह पाशविक संहार को जायज ठहराता है। यह कहते हुए कि उसकी भगवान से बातें होती हैं। वह उनके द्वारा धरती पर भेजा गया यमदूत है। हां, वह मजहब के नाम पर हत्याओं के खिलाफ है। ऐसे लोग दुर्भाग्य से हमारे बीच हैं। हम फिर भी उनकी निष्ठुरता को जानने व उससे सचेत रहने से बचते रहते हैं। उस मामले में हमारा पलायनवादी रवैया होता है।
बहरहाल, कहानी का दूसरा अहम किरदार रघुवेंद्र सिंह उब्बी ऊर्फ राघव है। वह वरिष्ठ पुलिस अधिकारी है। वह गाफिल, कलुषित व स्त्री-द्वेष रखने वाला इंसान है। उसके लिए स्त्री उपभोग की वस्तुु मात्र है। अपने मतलब के लिए किसी का खून कर देना भी उसकी फितरत में है। अपनी प्रेमिका व पिता के संग उसके ताल्लुक बेहतर नहीं हैं। उधर दूसरी तरफ रमन्ना के भीतर भी स्त्रियों के प्रति कड़वाहट है। वह बेवजह कत्ल करता है। यहां तक कि अपनी बहन के समूल परिवार को वह मार देता है। इस तरह निर्देशक अनुराग कश्यप ने दोनों के बीच रूपकों के जरिए समानता स्थानपित की है। यह जाहिर किया है कि पितृसत्तात्मक परिवार व समाज से निकले लोगों की क्या मनोदशा हो सकती है?
अनुराग कश्यप ने किस्सागोई में अपना हस्ताक्षर कायम रखा है। अपने किरदारों के बर्ताव से वे दर्शकों को तनाव की पराकाष्ठा तक ले जाते हैं। उन्होंने सह लेखक वासन बाला के साथ मिलकर इसे कातिल व पुलिस के बीच महज चूहा-बिल्ली का खेल नहीं बनने दिया है। उन्होंने आम मध्य वर्ग के नैतिक मूल्यों में लगातार आ रही गिरावट की सभी परतों को उधेड़ा है। राघव की प्रेमिका सिमी आज के जमाने की दक्षिण भारतीय युवती है। वह फिर भी राघव की खुदगर्जी झेलती है। अनुराग उसकी वजह की तह में नहीं गए, पर उस सोच की युवतियों को आइना दिखाया है। उन्होंने अपनी कथाभूमि मुंबई सिथत धारावी के स्लिम के रूप में चुना है। वहां रह रहे लोगों की दशा व वहां के माहौल को बारीकी से पेश किया है। उसे उन्होंने घिनौना नहीं होने दिया है, बल्कि यह दिखाने पर जोर दिया है कि भारत की आर्थिक राजधानी के केंद्र में भी एक ऐसा जहाँ बसता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा स्ल्म है। हमने कथित शहरी विकास के नाम पर क्या हासिल किया है, ‘रमन राघव 2.0’ की कायनात उस पर करारा तमाचा है।
‘रमन राघव 2.0’ को थ्रिलर व उसका ह्यूमर ब्लैक रखने में अनुराग कश्यप सफल रहे हैं। इस काम में उन्हें संगीतकार संदीप चौटा का अच्छा साथ मिला है। संदीप ने बैकग्राउंड में कर्कश ध्वानि का संयोजन रखा है। उससे सीन का प्रभाव गहरा हुआ है। इसकी कहानी आठ अध्यायों में बयां की गई है। ह्यूमर का पुट रमन्ना के हाव –भाव व उसके तर्कों से पता चलता है। वह जब कहता है कि वह तो मारने के लिए लोगों को मारता है, न कि धर्म के नाम पर। जब राघव इरादतन हत्याएं करता है तो कानून के चेहरे से कई नकाब उतर जाते हैं। आखिर में दोनों की सोच को एकीकृत कर अलग टेक लिया गया है। यह फिल्म नवाजुद्दीन सिद्दीकी, विक्की कौशल व शोभिता धुलिपाला की यादगार परफॉरमेंस की सौगात है। अनुभवी नवाज को विक्की कौशल ने बखूबी कॉम्प्लिमेंट किया है। आखिर में मनोरंजन महज फील गुड घटनाक्रमों का संयोजन नहीं है। समाज, सिस्टम व लोगों के स्याह पहलुओं से अवगत व विचलित कराती कहानी की भी उतनी ही जरूरत है। ताकि लोग सचेत व सावधान हो सकें।
अवधि- 140 मिनट 23 सेकेंड