फिल्म रिव्यू: 'फोबिया'- डर का रोमांच (3 स्टार)
खूबसूरत बात है कि इस हॉरर फिल्म 'फोबिया' में विकृत चेहरे और अकल्पनीय दृश्य नहीं है। और न ही तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल दिखाया गया है। इसे हॉरर से अधिक सायकोलोजिकल थ्रिलर कहना उचित होग
-अजय बह्मात्मज
प्रमुख कलाकार- राधिका आप्टे और सत्यादीप मिश्रा, अंकुर विकाल।
निर्देशक- पवन कृपलानी
स्टार- 3 स्टार
डर कहां रहता है? दिमाग में, आंखों में या साउंड में? फिल्मों में यह साउंड के जरिए ही जाहिर होता है। बाकी इमोशन के लिए भी फिल्मकार साउंड का इस्तेमाल करते हैं। कोई भी नई फिल्म या अनदेखी फिल्म आप म्यूट करके दखें तो आप पाएंगे कि किरदारों की मनोदशा को आप ढंग से समझ ही नहीं पाए। हॉरर फिल्मों में संगीत की खास भूमिका होती है। पवन कृपलानी ने ‘फोबिया’ में संगीत का सटीक इस्तेमाल किया है।
हालांकि उन्हें राधिका आप्टे जैसी समर्थ अभिनेत्री का सहयोग मिला है, लेकिन उनकी तकनीकी टीम को भी उचित श्रेय मिलना चाहिए। म्यूजिक डायरेक्टर डेनियल बी जार्ज, एडिटर पूजा लाढा सूरती और सिनेमैटोग्राफर जयकृष्णन गुम्मडी के सहयोग से पवन कृपलानी ने रोमांचक तरीके से डर की यह कहानी रची है।
महक पेंटर है। वह अपनी दुनिया में खुश है। एक रात एग्जीसबिशन से लौटते समय टैक्सी ड्रायवर उसे अकेला और थका पाकर नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करता है। वह उस हादसे को भूल नहीं पाती और एक मनोरोग का शिकार हो जाती है। बहन अनु और दोस्त शान उसकी मदद की कोशिश करते हैं। मनोचिकित्सक की सलाह पर उसके उपचार और सुरक्षा के लिए शान अपने दोस्त के खाली फ्लैट में उसे शिफ्ट कर देता है। यहां उसे विभ्रम होता है। उसे अजीब-सी आवाजें सुनाई पड़ती हैं और अस्पष्ट आकृतियां और चलते-फिरते अंग दिखाई पड़ते हैं। उसकी सुरक्षा के लिए घर में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं। शान की मानें तो कहीं कुछ भी नहीं है। महक की सुनें तो उस घर में कोई साया है। लेखक और निर्देशक ने इन दोनों के बीच दो और पड़ोसी किरदारों को जोड़ा है। महक अभी जिस फ्लैट में रहने आई है, उस फ्लैट में पहले जिया रहती थी। वह अचानक गायब हो गई है। महक को शक है कि पड़ोसी ने उसकी हत्या कर दी है।
फिल्मो के क्लाइमेक्स और भेद के बारे में लिखने से हॉरर फिल्म का रहस्य समाप्त हो जाएगा। पवन कृपलानी ने बहुत खूबसूरती से घटनाओं को गुंथा है। ऐसे अनेक प्रसंग आते हैं, जब लगता है कि भेद खुल जाएगा, लेकिन कहानी वहां से आगे बढ़ जाती है। फिल्म का रोमांच बना रहता है। यह फिल्म मुख्य रूप से राधिका आप्टे पर निर्भर करती है। शान के किरदार में सत्य दीप मिश्रा की सहयोगी भूमिका है। दोनों ने मिलकर पवन कृपलानी की सोच-समझ को उम्दा तरीके से प्रस्तुत किया है।
राधिका आप्टे अपनी पीढ़ी की टैलेंटेड अभिनेत्री हैं। अपनी फिल्मों और भूमिकाओं में भिन्नता रखते हुए वह आगे बढ़ रही हैं। ‘फोबिया’ में हम उनके सामर्थ्य से फिर से परिचित होते हैं। मुश्किल दृश्यों में उनकी पकड़ नहीं छूटती है और चालू दृश्यों में वह हल्की नहीं पड़ती हैं। उनकी आंखें बहुत कुछ कहती हैं और होंठ बोलते हैं। ऐगोराफोबिया मनोरोग की शिकार महक को राधिका आप्टे ने पूरे डर के साथ चित्रित किया है। सत्यदीप मिश्रा की सहयोगी भूमिका है। वे अपने स्पेस का सदुपयोग करते हैं। पड़ोसियों के रूप में यशस्विनी दायम और अंकुर विकल भी अपनी मौजूदगी से कुछ न कुछ जोड़ते हैं।
खूबसूरत बात है कि इस हॉरर फिल्म में विकृत चेहरे और अकल्पनीय दृश्य नहीं है। और न ही तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल दिखाया गया है। इसे हॉरर से अधिक सायकोलोजिकल थ्रिलर कहना उचित होगा।
अवधि- 113
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