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फिल्‍म रिव्‍यू: बेदम और निराधार 'हनुमान दा दमदार'

ऐसा साफ लगा है कि फिल्मकार ने एक तो बच्चों को ध्‍यान में रख कहानी रची है, दूजा यह कि वे बच्चे दिमागी तौर पर भी बच्चे ही हैं।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Published: Thu, 01 Jun 2017 04:42 PM (IST)Updated: Thu, 01 Jun 2017 04:42 PM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: बेदम और निराधार 'हनुमान दा दमदार'
फिल्‍म रिव्‍यू: बेदम और निराधार 'हनुमान दा दमदार'

-अमित कर्ण

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मुख्य कलाकार: सलमान ख़ान, रवीना टंडन, विनय पाठक, चंकी पांडे, जावेद अख़्तर, कुणाल खेमू आदि।

निर्देशक: रुचि नारायण

निर्माता: आरएटी फ़िल्म्स

स्टार: **1/2 (ढाई स्टार)

भारत में देसी एनिमेशन फिल्मों की दुर्दशा के लिए ‘हनुमान दा दमदार’ जैसी स्‍तरहीन पेशकश अहम वजह हैं। यहां कहानी, संवाद और किरदारों के गठन के प्रति आपराधिक लापरवाही बरती गई है। ‘तेरी भैंस की पूंछ’ और ‘हटा सावन की घटा’ से लेकर सलमान खान की फिल्मों के डायलॉग मायथोलॉजी के किरदारों के साथ मजाक हैं। यह बाल हनुमान के रोमांचक सफर पर और तब के काल में केंद्रित हैं, पर किरदार आपस में हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी तक में बात करते हैं। रावण राज से पहले की लंका में हंसी-ठिठोली करने वाले संदेशवाहक को हास्यास्पद ‘गे’ के तौर पर पेश करना लचर कहानी की चुगली करता है। वहां के राजा सोमाली को साउथ इंडियन दिखाया गया है, जो वहां के टोन वाली हिंदी में बात करता है, जो दशकों से दोहराव के जाल में उलझा हुआ है।

कई सीन लंबे वार्तालापों से ठस हैं। इसके चलते फिल्म बोझिल हो गई है। फिल्‍मकार ने मुख्‍य किरदारों की आवाज के लिए नामी कलाकारों को बोर्ड पर तो ले लिया, पर संवादों का फीकापन मजा किरकिरा कर गया। हनुमान के लिए सलमान खान और वाल्मीकि के लिए जावेद अख्‍तर की आवाज नाममात्र की अवधि के लिए हैं। रोचक संवाद सिर्फ इंद्र और गरूड़ के खातों में गए हैं। कुणाल खेमू की आवाज इंद्र के किरदार पर जंची है। बहरहाल, फिल्म का आगाज महर्षि वाल्‍मीकि के आश्रम से होता है। वे उनसे शिक्षा ग्रहण कर रहे लोगों को महावीर हनुमान की वीरता के किस्से सुना रहे हैं। लेकिन असल में वीरता की कहानी उतनी भर ही है, फिल्म उसकी तलाश पर केंद्रित है।

स्‍वयं युवा हनुमान उनके समक्ष आ अपना राज़ जाहिर करते हैं। वह यह कि बचपन में इंद्र ने उन पर वज्र से प्रहार किया था। चोटिल बाल हनुमान महाडरपोक बन गए थे। वहां से हजारों मील दूर एक साधु विशरव धोखे से बाल हनुमान के जरिए देवलोक से अमृत हासिल करना चाहिता है। एक दिन एक चक्रवात हनुमान को अपने माता-पिता से जुदा कर देता है। तब हनुमान निकल पड़ते हैं अपने दमदार बनने के रोमांचक सफर पर। रास्ते में जंगलपुर आता है। ठीक रामायण में जैसे राम-सीता और लक्ष्‍मण की कहानी की तरह। वहां के जानवर बाल हनुमान की मदद करते हैं। बीच में गरूड़ की एंट्री होती है। वह हनुमान की हौसलाअफजाई कर उन्हें उनकी असल ताकत से वाकिफ करता है। वैसे ही, जैसे रामायण में समुद्र पार करते वक्त पवनपुत्र हनुमान को उनकी ताकत महसूस करवाई गई थी।

खैर, गरूड़ उस साधु विशरव का मोहरा है, जिसे अमृत हासिल करना है। फिल्‍म के एनिमेशन की गुणवत्ता अच्छी है। बाकी सब कुछ मंथर है। समग्रता के लिहाज से फिल्‍म असरहीन हो गई है। ऐसा साफ लगा है कि फिल्मकार ने एक तो बच्चों को ध्‍यान में रख कहानी रची है, दूजा यह कि वे बच्चे दिमागी तौर पर भी बच्चे ही हैं। असल में ऐसा नहीं है। वे पेचीदा कहानियों को समझ सकते हैं। वे चाहते हैं कि किरदारों की संरचना अनुशासित हो। तभी बाहर की एनिमेशन फिल्में यहां बेहतर करती हैं। उनके टारगेट ऑडिएंस बच्चे ही नहीं बड़े भी होते हैं। यह बात फिल्‍मकारों को भी समझनी होगी। एनिमेशन को सिर्फ मायथोलॉजी में सेट करने से मोहभंग करने की भी सख्त जरूरत है।

अवधि: 104 मिनट


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