फिल्म रिव्यू : 'बागी' में एक्शन के 56 भोग (3.5 स्टार )
बदला इंसान का सबसे मीठा भाव होता है। साबिर खान ने इस सोच को केंद्र में रखते हुए ‘बागी’ को एक्शन को समर्पित कर दिया है।
अमित कर्ण
प्रमुख कलाकार-टाइगर श्रॉफ, श्रद्धा कपूर, सुधीर बाबू
निर्देशक-सब्बीर खान
संगीत निर्देशक-अमाल मलिक, मीट ब्रॉस, अंकित तिवारी
स्टार-साढ़े तीन
बदला इंसान का सबसे मीठा भाव होता है। साबिर खान ने इस सोच को केंद्र में रखते हुए ‘बागी’ को एक्शन को समर्पित कर दिया है। खासतौर पर कलरीमपयट्टू को। यह सभी मार्शल आर्ट विधाओं की जननी है। 1542 में जब बौद्ध भारत से चीन गए थे तो वहां के लोगों ने इसे आत्मसात किया था। वहां का शाऊलिन मंदिर इस कला का मक्का माना जाता है। कलरीपयट्टू में शारीरिक ताकत, उसका संतुलन व मानसिक एकाग्रता का बेजोड़ मेल होता है। इसके दक्ष लोग निहत्थे ही दुश्मसन की पूरी फौज तक नेस्ततनाबूत करने की क्षमता रखती है। महज ऊंगलियों की जादूगरी से दिमाग की नसें व शरीर के अलग-अलग हिस्सों की मजबूत हड्डियों को चटकाया जा सकता है। इन्हीं खूबियों की वजह से पूरी फिल्म में यह छाई हुई है।
पर्दे पर इसका सही चित्रण हो, उसकी खातिर मास्टर शिफूजी शौर्य भारद्वाज को गुरूजी की भूमिका दी गई है। उन्होंने इस कला की झलक मात्र से सब को आश्चीर्यचकित किया है। इस काम में उन्हें टाइगर श्रॉफ और सुधीर बाबू का पूरा साथ मिला है। उन तीनों के हैरतअंगेज स्टंरट व एक्शन रोमांच की चरम अनुभूति प्रदान करते हैं। श्रद्धा कपूर ने भी अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज की है। एक्शन के अलावा यह फिल्मप बगावत को इबादत में तब्दील करने के नतीजे पर केंद्रित है। यह ताकत की खूबी व खामियों की ओर इशारा करती है। यह बड़े सरल शब्दों में कहती है कि ताकत से जंग जीती जा सकती है, पर किसी का प्यार हासिल नहीं किया जा सकता।
कहानी सिया, रॉनी व राघव के इर्द-गिर्द केंद्रित है। रॉनी व सिया एक-दूसरे से प्यार करते हैं, मगर सिया के संघर्षरत निर्माता पिता पैसे की खातिर सिया को राघव को सौंप देते हैं। राघव कलरीपयट्टू के पुरोधा गुरूजी का बेटा है। वह खुद भी इस कला का माहिर है। वह सिया को जबरन हासिल करना चाहता है। अपने बल का दुरूपयोग कर वह उसे अपनी लंका बैंकॉक ले जाता है, जहां का वह सिरमौर है। वहां उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। फिर शुरू होता है सिया को बैंकॉक से हिंदु्स्तान वापस लाने का महासमर। राघव की लंका खूंखार लड़ाकों से भरी पड़ी है। रॉनी उस चक्रव्यूह को भेद कैसे सिया को हासिल करता है, यह फिल्म उस बारे में है। यह फिल्म कहानी से अधिक एक्शन दृश्यों की कोरियोग्राफी के लिए याद रखी जाएगी। वैसे तो इसमें राघव की बहुमंजिला इमारत हूबहू वैसी ही है, जैसी इंडोनेशियाई फिल्मब ‘ द रेड : रिडंप्शन’ में थी। रॉनी के लिए चक्रव्यूह भी उसी फिल्म जैसा रचा गया, मगर साबिर खान ने फिल्मं का सराहनीय देसीकरण किया है।
कलाकारों के स्टंट आला दर्जे के हैं। वे मंत्रमुग्ध करने में समर्थ हैं। हिंदी सिनेमा में अब तक इस किस्म का एक्शन कम ही मौकों पर देखने को मिला है। रॉनी के रोल में टाइगर अकेले राघव की फौज को खत्म करता है, पर उनकी फाइट अविश्वसनीय नहीं लगती। टाइगर और राघव बने सुधीर बाबू एक-दूसरे के पूरक लगे हैं। बाकी एक्शन फिल्मोंट की तरह नहीं, जहां हीरो के तो आठ पैक एब्स हैं, पर विलेन दुबला-पतला सा। सिर्फ विलेन की सेना हीरो का मुकाबला करती है। दरअसल टागर व सुधीर बाबू, दोनों असल जिंदगी में भी मार्शल आर्ट में दक्ष हैं। वे इसका निरंतर अभ्यास सालों से करते रहे हैं। ऐसे में जिस सफाई व चपलता से उन्होंने सटंट व फाइट सीन फिल्माए हैं, वे सराहनीय हैं। टाइगर श्रॉफ जब-जब गंभीर मुद्रा में नजर आए, वे प्रभावी लगे, पर इमोशनल सीन में उनकी कमी साफ नजर आई। सिया बनी श्रद्धा कपूर भी असर छोड़ गई हैं। सुधीर बाबू इस फिल्मब की खोज हैं। ‘फोर्स’ से मजबूत कद व फाइट में माहिर विद्युत जांबाल मिले थे। यहां वह कमाल सुधीर बाबू ने किया है।
फिल्म को प्रभावी व खालिस एक्शन बनाने में निर्देशक साबिर खान, पटकथा लेखक संजीव दत्ता, व थाईलैंड के एक्शन डायरेक्टर केचा खंफक्डी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। केचा खंफक्डी को भारत की तरफ से जावेद-अजीज का भरपूर साथ मिला है। फिल्म के आखिरी तीस मिनट का एक्शन सम्मोहक है। साबिर खान ने टाइगर श्रॉफ के सिग्नेचर टोन का बखूबी इ्सतेमाल किया है। ‘हीरोपंथी’ में उनका ‘सब को आती नहीं, मेरी जाती नहीं’ संवाद बार-बार इ्सतेमाल हुआ था। यहां साबिर ने उनसे ‘ अभी तो मैंने शुरू ही किया है’ बुलवाया है। दोनों जगह यह टाइगर की शख्सियत को सूट किया है। जूलियस पैकियम का बैकग्राउंड संगीत फिल्म में डर व रोमांच के भाव को गति प्रदान करता है। कैमरामैन ने केरल की खूबसूरती को बखूबी कैप्चर किया है। मानव सेंगर की एडिटिंग की वजह यह हीरो व विलेन के बीच महज पागलपन भरा अंधा द्वंद्व युद्ध नहीं बना है। कहानी के बीच-बीच दूसरे किरदारों से फिल्म सिर्फ एक्शन के रंग में रंगी नजर नहीं आती। सिया के पिता बने सुनील ग्रोवर, बैंकॉक में ड्राइवर बने संजय मिश्रा व बाल कलाकार की कॉमेडी असरदार है।
अवधि-138 मिनट