विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव के संकेत
विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पंजाब भाजपा मेंं बड़े बदलाव के संकेत हैं। पार्टी के प्रदेश प्रधान सहित कई पदाधिकारी बदले भी जा सकते हैं।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद पंजाब भाजपा में बड़े बदलाव की तैयारी हो रही है। संकेत हैं कि भाजपा के प्रदेश प्रधान समेत कई ओहदेदारों को बदले जा सकते हैं। राज्य में भाजपा में आपसी मतभेदों और टकराव के कारण कयासबाजी का दौर तेज है। विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी में धड़ेबाजी के कारण उच्च नेतृत्व नाराज बताया जा रहा है।
विजय सांपला पिछले साल 8 अप्रैल को पंजाब भाजपा के प्रधान बनाए गए थे। इसके बाद से पार्टी में करीब हर स्तर पर गुटबाजी बढ़ती दिखी। टिकटों के आवंटन में यह धड़ेबंदी साफ नजर आई। सांपला समर्थक कुछ नेताओं ने अन्य नेताओं की टिकट कटवाने की कोशिश की। यहां तक कि खुद सांपला ने फगवाड़ा से पार्टी प्रत्याशी सोम प्रकाश का विरोध करते हुए उनकी टिकट न काटे जाने के विरोध में इस्तीफा देने की धमकी तक दे डाली थी।
उस समय विधानसभा चुनाव के कारण पार्टी ने उन्हें मना लिया था, लेकिन विरोधी गुट इस बात को फिर से उठा रहा है। उनका तर्क है कि बीच चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे नेता की ओर से इस्तीफा देने की धमकी देने से पार्टी कार्यकर्ताआें का मनोबल गिरा। इससे पार्टी का राज्य चुनाव में प्रदर्शन भी बेअसर नहीं रह सकता।
सांपला विरोधी गुट सक्रिय
सूत्रों के मुताबिक सांपला विरोधी गुट केंद्र में लगातार इस मुद्दे को गर्माते हुए सांपला को पद से हटाने की पैरवी कर रहे हैं। इनमें अब कुछ ऐसे नेता भी शामिल हैं, जिनकी सांपला को प्रधान बनाने में अप्रत्यक्ष भूमिका रही थी। इन गुटों को पूरी उम्मीद है कि चुनाव नतीजे आने के बाद कभी भी सांपला की जगह नए प्रधान की नियुक्ति हो सकती है। किसी नए चेहरे की बजाय पार्टी किसी पुराने प्रधान पर ही दांव खेलेगी।
प्रदेश पदाधिकारियों पर भी गिरेगी गाज
पार्टी के कई प्रदेश पदाधिकारियों पर भी इस फेरबदल में गाज गिरेगी। नए प्रधान द्वारा अपनी टीम गठित की जाएगी, ऐसे में अपने खासमखास लोगों को संगठन में एडजस्ट करने के लिए मौजूदा टीम के कुछ नेता पदाधिकारियों की सूची से बाहर हो सकते हैं।
पार्टी में यह चर्चा भी आम है कि बीते करीब 10-12 साल से वही चेहरे सत्ता व संगठन का आनंद ले रहे हैं। कभी संगठन में महासचिव या उपाध्यक्ष बन कर तो कभी सरकार में किसी बोर्ड-निगम का चेयरमैन बन कर। ऐसे में अब पार्टी नेतृत्व को इस बात के लिए मनाया जा रहा है कि संगठन का का जिम्मा ऐसे नेताओं को दिया जाए जो गठबंधन सरकार में किसी बोर्ड-निगम के चेयरमैन नहीं रहे और जिन्हें संगठन में भी कोई बड़ा पद नहीं मिला।