विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए की रांची रैली में एक बार फिर यही अधिक सुनने को मिला कि लोकतंत्र के साथ संविधान खतरे में है। कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी दल पिछले एक अर्से से यही बात करने में लगे हुए हैं। आम चुनावों की घोषणा होने के उपरांत इन दलों ने इसे अपना एक मुख्य मुद्दा सा बना लिया है कि यदि नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापसी हुई तो इस बार के आम चुनाव आखिरी लोकसभा चुनाव साबित होंगे और संविधान का बचना भी मुश्किल है। क्या यह विडंबना नहीं कि लोकतंत्र और संविधान के खतरे में होने पर सबसे ज्यादा जोर वह कांग्रेस दे रही है जिसने देश पर न केवल आपातकाल थोपा, बल्कि संविधान में मनमाने परिवर्तन किए। भले ही आपातकाल का दौर गुजरे कई दशक बीत गए हों, लेकिन देश अभी उसे भूला नहीं है। यह विचित्र है कि जिन दलों ने इंदिरा गांधी की ओर से थोपे गए आपातकाल के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उनमें से कुछ अब लोकतंत्र और संविधान पर खतरे के जुमले को दोहराने में लगे हैं। यह स्थिति यही रेखांकित करती है कि आइएनडीआइए के पास उन मुद्दों का अभाव है जिन्हें आगे कर वह जनता को अपनी ओर आकर्षित कर सके। निःसंदेह ऐसा नहीं है कि ऐसे मुद्दे नहीं हैं और मोदी सरकार ने सभी समस्याओं का समाधान कर दिया है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आइएनडीआइए के घटक दल अपने घोषणा पत्रों के माध्यम से भी कोई प्रभावी वैकल्पिक एजेंडा जनता के सामने नहीं रख सके। उनके एजेंडे में कई ऐसी बातें हैं जो एक-दूसरे के विपरीत हैं। क्या कांग्रेस अथवा उसके सहयोगी दल यह बता सकते हैं कि यदि वे सत्ता में आए तो किसके घोषणा पत्र पर अमल किया जाएगा।

रांची की रैली में यह भी सुनाई दिया कि मोदी सरकार जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मारना चाहती है। इस तरह के आरोपों पर इसलिए शायद ही कोई ध्यान दे, क्योंकि दिल्ली की सरकार के नियंत्रण वाला तिहाड़ जेल प्रशासन केजरीवाल को दिए जा रहे भोजन और दवाओं के बारे में कुछ अलग ही रिपोर्ट दे रहा है। यह ठीक है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दल एक-दूसरे पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं, लेकिन यदि वे तार्किक और जनता के गले उतरने वाले न हों, तो फिर वे केवल खबरों का हिस्सा बनकर रह जाते हैं। रांची की रैली में जहां सुनीता केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को मोदी सरकार से खतरा बताकर सहानुभूति पाने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर उन्हीं की तरह भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी ने यह कहकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की कि भाजपा अगर फिर सत्ता में आई तो आदिवासी समाज के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा। अच्छा हो कि आइएनडीआइए के घटक दल यह समझें कि इस तरह की घिसी-पिटी और प्रभावहीन बातें करने से या आरोप लगाने से बात बनने वाली नहीं है।