राज्य में छह माह के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव करवाए जाने के उच्च न्यायालय के निर्देश इस दृष्टि से सराहनीय है कि इससे प्रदेश में लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बढ़ेगा। अदालत ने सरकार को तीन माह के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव करवाने के निर्देश दिए हैं। अब देखना यह है कि सरकार निकाय चुनावों के लिए तैयार है भी या नहीं। निकाय चुनाव पार्टी के आधार पर होते हैं। बेशक निर्वाचन आयोग ने चुनाव की पूरी तैयारियां कर रखी हैं। लेकिन कोई भी राजनीतिक दल फिलहाल इन चुनावों को लेकर तैयार नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि गत वर्ष भाजपा-पीडीपी के गठबंधन सरकार के अस्तित्व में आने के बाद लोगों को काफी उम्मीद थी कि साझा कार्यक्रम के तहत क्षेत्रों का विकास होगा, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया। मुफ्ती मुहम्मद सईद के निधन के बाद राज्यपाल शासन लगा दिया गया। जिससे अनिश्चतता का माहौल रहा कि राज्य में गठबंधन फिर सत्ता कब संभालेगा। कुल मिला कर देखा जाए तो सत्ताधारी दोनों दल के नेता जनता से दूर रहे। लोगों को भी लगा कि गठबंधन आपस में बिखरा हुआ है और यह लोगों कि अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरेगा। बेशक अब महबूबा मुफ्ती ने राज्य की बागडोर संभाल ली है। दरबार मूव से पहले उन्होंने जम्मू शहर के कई विकास कार्यों का शिलान्यास कर लोगों के दिल जीतने की कोशिश की। महबूबा ने जम्मू में बॉर्डर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सुचेतगढ़ और चमलियाल को वाघा बॉर्डर की तर्ज पर विकसित करने को मंजूरी देकर सीमांत क्षेत्रों में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की। अगर निकाय चुनाव होते हैं तो केन्द्र से शहरी विकास के लिए मिलने वाले राशि भी मंजूर होगी। जिससे मुहल्ला स्तर पर विकास संभव होगा। इससे राजस्व वसूली भी बढ़ेगी और निकाय आत्मनिर्भरता की ओर बढ़़ेंगे। राज्यपाल ने भी अपने शासन के दौरान जम्मू-कश्मीर में निकाय चुनाव करवाने के निर्देश दिए। विडम्बना यह है कि राज्य में पिछले छह वर्षों से निकाय चुनाव नहीं हो पाए हैं जबकि इसे वर्ष 2010 में करवाया जाना चाहिए था। सरकार को भी चाहिए कि कोर्ट के निर्देश का पालन करे और तीन माह के भीतर चुनाव प्रक्रिया को पूरा कर लोकतंत्र ढांचे को मजबूत बनाए। अगर लोकतंत्र मजबूत होगा तो विकास को बल मिलेगा क्योंकि निकाय चुनाव में मुहल्ला स्तर के प्रतिनिधि चुनकर सामने आएंगे और विकास कार्यों की प्राथमिकता तय करेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]