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GST से खेल और फिटनेस सेक्टर को कई फायदे, लेकिन अब भी कुछ चिंताएं बरकरार

देशभर में एक जुलाई से जीएसटी के लागू होने के बाद खेल और फिटनेस उद्योग को कई तरह के फायदे हुए हैं

By Surbhi JainEdited By: Published: Fri, 14 Jul 2017 11:39 AM (IST)Updated: Fri, 14 Jul 2017 11:39 AM (IST)
GST से खेल और फिटनेस सेक्टर को कई फायदे, लेकिन अब भी कुछ चिंताएं बरकरार
GST से खेल और फिटनेस सेक्टर को कई फायदे, लेकिन अब भी कुछ चिंताएं बरकरार

नई दिल्ली (रविंदर धीर)। सरकार ने परोक्ष कर व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार करते हुए देश में एक जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया है। जीएसटी लागू होने से खेल और फिटनेस उद्योग को कई तरह के फायदे हुए हैं जबकि कई मामलों में थोड़ी चिंता भी है। जीएसटी में पंजीकरण बहुत आसान हो गया है। जीएसटी से पूर्व की व्यवस्था में आपको केंद्र और राज्य के अलग-अलग टैक्स के लिए अलग-अलग पंजीकरण कराना होता था। अब एक बार में ही व्यापारी का ऑनलाइन पंजीकरण हो जाता है। दूसरी खासियत यह है कि जीएसटी में बिना ऑडिट के सेल्फ असेसमेंट की सीमा बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दी है जो सकारात्मक पहल है। राज्यों के अधिकतर कर समाप्त होने के बाद एक कर लगाने से कारोबारियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित होंगे। साथ ही चुंगी कर खत्म होने से सामान की ढुलाई आसान हो जाएगी। वहीं फार्म सी, फार्म एच और फार्म ई1 व ई2 समाप्त होने से कारोबार की प्रक्रिया और सरल हो जाएगी।

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हालांकि इन सब फायदों से अलग खेल का सामान बनाने वाले उद्योग की कुछ चिंताएं भी हैं। मसलन खेल और फिटनेस उत्पादों पर जीएसटी की उच्च दर जैसे 12 से 28 प्रतिशत रखी गयी है। इससे कारोबारियों को अब अधिक वर्किंग कैपिटल की जरूरत होगी। जीएसटी लागू होने से पूर्व खेल उत्पादों पर करों की दर अपेक्षाकृत कम थी। ज्यादातर खेल का सामान पंजाब के जालंधर और उत्तर प्रदेश के मेरठ शहरों में बनता है। यूपी में खेल उत्पाद टैक्स फ्री थे जबकि पंजाब में इन पर दो प्रतिशत सीएसटी और 5.5 प्रतिशत वैट लगता था। असल में खेल उद्योग की अधिकांश मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट छोटी हैं और उनका सालाना कारोबार 1.5 करोड़ रुपये से भी कम है।

यही वजह है कि अधिकतर खेल उत्पाद बनाने वाली इकाइयां उस समय केंद्रीय उत्पाद शुल्क के दायरे से बाहर थीं। जो इकाइयां केंद्रीय उत्पाद शुल्क के दायरे में आती थीं, उनमें से बहुत सी कंपनियां निर्यात करती थीं इसलिए उन पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता था। अब बीस लाख रुपये से ज्यादा सालाना कारोबार करने वाली औद्योगिक इकाई को जीएसटी के लिए पंजीकरण कराना होगा और अंतरराज्यीय कारोबार करने के लिए तो इतनी भी छूट नहीं है। ऐसे में खेल उत्पादों पर जीएसटी की उच्च दर लगाना तर्कसंगत नहीं है। सरकार को इसे पांच प्रतिशत के आसपास रखना चाहिए।

खेल उद्योग का सालाना तकरीबन 1800 करोड़ रुपये का कारोबार है। यह श्रम प्रधान उद्योग है और इसकी करीब 2000 इकाइयों में लगभग चार लाख कुशल और अर्धकुशल लोग काम करते हैं। यह उद्योग मुख्यत: लघु स्तर पर किया जा जा रहा है। ऐसे में खेल उद्योग के संबंध में कराधान नीति सकारात्मक रखनी चाहिए।

(यह लेख रविंदर धीर, खेल उद्योग संघ, जालंधर ने लिखा है।)


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