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भारतीय बचतकर्ता बीमा योजना चुनने की असमंजस में

बीमा खरीदने से पहले समझिए इसके मायने और जरूरतें

By Surbhi JainEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 12:08 PM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 12:08 PM (IST)
भारतीय बचतकर्ता बीमा योजना चुनने की असमंजस में
भारतीय बचतकर्ता बीमा योजना चुनने की असमंजस में

नई दिल्ली (धीरेंद्र कुमार, वैल्यु रिसर्च)। बीमा लेना हर बचतकर्ता का पहला कदम होना चाहिए। इससे पहले कि आर्थिक रूप से कुछ भी करने के बारे में सोच रहे हैं, बीमा कराना चाहिए। वैसे, उपयुक्त बीमा लेने के लिए यह समझना होगा कि वास्तव में बीमा क्या है और आपको कितने की जरूरत है।

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शब्दकोश में बीमा की परिभाषा कहती है कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक कंपनी निश्चित प्रीमियम के भुगतान के बदले निर्दिष्ट नुकसान, क्षति, बीमारी या मृत्यु के लिए मुआवजे की गारंटी प्रदान करती है। जीवन बीमा के लिए इसे इस प्रकार सरल कर सकते हैं कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत एक कंपनी बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर निर्दिष्ट प्रीमियम के भुगतान के बदले उसके परिजनों को क्षतिपूर्ति करेगी। यह बीमा की एकमात्र परिभाषा है। ध्यान रखें कि इससे अधिक बीमा एजेंट आपको जो कुछ बेचना चाहते हैं वह बीमा नहीं है।

आपका कितना बीमा होना चाहिए? इस उत्तर तक पहुंचने के कई तरीके हैं। लेकिन वर्तमान के हिसाब से आपकी दस साल की आय प्रारंभिक बिंदु हो सकता है। यह बिंदु स्पष्ट रूप से परिवार के अन्य सदस्यों की आय, परिसंपत्तियों, मकान, इत्यादि के अनुसार अलग-अलग होगा। लेकिन शायद ही कभी दस वर्ष की आय से कम की राशि पर्याप्त होगी। यदि आप मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं, तो जल्दी से अनुमान लगाएं कि आपके परिवार का बजट क्या होगा अगर आपकी मौत जल्द हो जाती है।

ऐसे में यहां सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या आपके पास पर्याप्त बीमा है? संभवत: जवाब न है। और मुङो यह कैसे पता है? क्योंकि यह भारतीयों के विशाल बहुमत के लिए सही उत्तर है। लिहाजा आंकड़ों के हिसाब से बोल रहा हूं कि यह आपका उत्तर भी हो सकता है। अजीब बात यह है कि मेरे अनुभव से तमाम लोगों को पता है कि वे बीमा कंपनियों को कितने प्रीमियम का भुगतान करते हैं, लेकिन पता नहीं है कि उनके परिवार को क्या मिलेगा यदि उनकी मृत्यु हो गई। दरअसल, यह अजीब नहीं है क्योंकि जीवन बीमा व्यवसाय को पैसे जुटाने के लिए ही अनुकूलित किया गया है। वास्तव में, इसकी सफलता मापने का मानक यह नहीं कि ग्राहक कितना बीमित हैं बल्कि यह है कि वे कितना पैसा दे रहे हैं। इसके तहत दिए जाने वाले ज्यादातर उत्पाद इंश्योरेंस प्रोडक्ट नहीं हैं बल्कि महंगे और अपारदर्शी निवेश उत्पाद हैं जिनमें वैधानिक आवश्यकता के रूप में वास्तविक बीमा का मामूली अंश भर है।

वैसे, यह आधिकारिक है। बीमा नियामक इरडा भी सफलता का निर्धारण इस बात से करता है कि कंपनियों ने ग्राहकों से कितना पैसा लिया है। बजाय इसके कि उन्होंने कितना बीमा कितने लोगों को दिया है। इरडा की वार्षिक रिपोर्ट या देश में प्रकाशित किसी भी अन्य डाटा से इस बात का पता नहीं चलता है कि वास्तव में किस हद तक लोग बीमित हैं। इरडा रिपोर्ट बनाने में ‘बीमा घनत्व’ का उपयोग करता है। यह प्रत्येक ग्राहक से वसूले गए प्रीमियम और जीडीपी के अनुपात में प्रीमियम की राशि पर आधारित है।

ये आंकड़े यह नहीं बताते हैं कि कितना बीमा कवर दिया गया है। इनसे सिर्फ यह पता चलता है कि उद्योग ने लोगों से कितना पैसा निकाला है। असली सवाल ये हैं कि जब किसी ग्राहक की मौत हो जाती है, तो उसके परिवार को कितना पैसा मिलता है? कितने ग्राहकों के पास कितना बीमा कवर है? उपलब्ध कराए गए कवर में जुटाए गए कुल प्रीमियम का अनुपात क्या है? अफसोस की बात है कि यह जानकारी या तो मौजूद ही नहीं है (यानी इरडा को इससे कोई लेनादेना नहीं है), या एक रहस्य है।

यह रवैया पूरी तरह से उस व्यक्ति के व्यवहार में परिलक्षित होता है जो आपको बीमा बेचता है। हालांकि, एजेंट कैसे समझाता है और उल्लू बनाता है यह लंबी कहानी है। आपको केवल दस साल की आय वाले मूल्य के बीमा पर ध्यान देना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको सही बीमा उत्पाद मिलेगा जो टर्म इंश्योरेंस है। इसका कारण यह है कि अन्य बीमा उत्पादों में, दस साल के जीवन कवर के लिए आपको अपनी पूरी आय खर्च करनी होगी।

बीमा खरीदने का बुनियादी सिद्धांत बीमा और निवेश को अलग रखना है और केवल शुद्ध बीमा (टर्म इंश्योरेंस) खरीदना है। भारत में बीमा विक्रेताओं ने एक खास निवेश संस्कृति को प्रोत्साहित किया है जहां लोग टर्म इंश्योरेंस खरीदने से कन्नी काटते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वापस कुछ नहीं मिलेगा। एजेंट इन्हें बेचने से बचते हैं क्योंकि उन्हें टर्म इंश्योरेंस की तुलना में अन्य प्रकार के उत्पादों को बेचने में बहुत अधिक कमीशन मिलता है। इस मौजूदा प्रणाली के बारे में ईमानदारी से टिप्पणी करते हुए उदार होना संभव नहीं है। इसलिए मैं कोशिश भी नहीं करूंगा। यह प्रणाली मौजूद है क्योंकि नियामक सो रहा है, एजेंट जोड़-तोड़ कर रहे हैं और ग्राहकों को मूर्ख बनाया जा रहा है। प्रणाली नहीं बदलने वाली है। लिहाजा आप पर है कि सीखें कैसे बीमा खरीदते हैं।


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