किसानों ने बदला खरीफ की खेती का पैटर्न
किसानों ने खरीफ सीजन में दलहन व तिलहन का रकबा घटाकर जोर कपास की खेती पर लगाया है
नई दिल्ली (सुरेंद्र प्रसाद सिंह)। कीमतों में उतार-चढ़ाव और मानसून की बारिश के हिसाब से किसानों ने खरीफ की खेती के पैटर्न को बदल दिया है। खेती में नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर किसानों ने खरीफ सीजन में दलहन व तिलहन का रकबा घटाकर जोर कपास की खेती पर लगा दिया है। यही वजह है कि दलहन व तिलहन का बुवाई रकबा 14.27 लाख हेक्टेयर घटा है तो कपास की खेती का रकबा लगभग इतना ही बढ़ गया है।
सरकार के प्रोत्साहन और बाजार में महंगी दाल और खाद्य तेलों को देख कर किसानों ने पिछले साल पूरा जोर इन्हीं फसलों की खेती पर लगाया था। इससे देश में दलहन फसलों की पैदावार ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। आयात निर्भरता घटने के आसार हैं। लेकिन महाराष्ट्र व कर्नाटक में अरहर जैसी प्रमुख दलहन की उपज के खरीदार नहीं मिले। बाजार में डेढ़ से पौने दो सौ रुपये प्रति किलो बिकने वाली अरहर दाल नई फसल के आते ही खुले बाजार में किसान की उपज 38 रुपये प्रति किलो की दर पर लुढ़क गई। अरहर बुवाई का रकबा कर्नाटक में लगभग साढ़े तीन लाख हेक्टेयर और महाराष्ट्र में सवा दो लाख हेक्टेयर घटा है।
तिलहन की खेती में 10.13 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। बढ़ते आयात के चलते घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमत में अच्छी वृद्धि नहीं हो पा रही है। किसानों ने तिलहन की खेती से मुंह मोड़ नफा देने वाली फसल की ओर कर लिया है। मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती 5.66 लाख हेक्टेयर कम हुई है। राज्य के किसानों ने अपना रुख लाभ देने वाली कपास की फसल की ओर किया है।
खरीफ सीजन की अन्य फसलों में धान की रोपाई के आंकड़े में मामूली बढ़त दर्ज की गई है। मोटे अनाज वाली फसलों के बुवाई रकबे में चार लाख हेक्टेयर की कमी आई है। लेकिन लौटते मानसून का रुख देख किसान बाकी बचे खेतों में इन फसलों की खेती जरूर करेंगे। इसके लिए अभी समय बाकी है।
दक्षिण के राज्यों में मानसून की बेरुखी से सूखे जैसे हालात पैदा हो गए हैं। लिहाजा कर्नाटक में खरीफ की पूरी खेती बिगड़ गई है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में होने वाली अरहर की बुवाई ठप है। इससे अरहर का बुवाई के रकबे में नौ लाख हेक्टेयर तक की कमी आई है। बाकी दलहन फसलों की खेती संतोषजनक रही है। कर्नाटक में होने वाली सूरजमुखी की खेती नहीं हो पाई है।
महाराष्ट्र में अरहर और अन्य फसलों की बुवाई की जगह किसानों ने कपास की खेती की है। तिलहन जैसी प्रमुख फसल की खेती में बहुत कमी दर्ज की गई है। कुल बुवाई रकबा में 10 लाख हेक्टेयर से भी अधिक की कमी आई है। इसमें अकेले मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती 5.66 लाख हेक्टेयर कम हुई है। किसानों ने इसकी जगह कपास और मूंग की खेती की है। यही वजह है कि कपास की खेती का रकबा 16.35 लाख हेक्टेयर बढ़ गया है।