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सोने पर दो फीसद की दर से विशेष जीएसटी लगाने के पक्ष में सर्राफा कारोबारी

सर्राफा कारोबारी सोने पर दो फीसद विशेष जीएसटी की मांग कर रहे हैं

By Praveen DwivediEdited By: Published: Mon, 22 May 2017 05:40 PM (IST)Updated: Mon, 22 May 2017 07:13 PM (IST)
सोने पर दो फीसद की दर से विशेष जीएसटी लगाने के पक्ष में सर्राफा कारोबारी
सोने पर दो फीसद की दर से विशेष जीएसटी लगाने के पक्ष में सर्राफा कारोबारी

नई दिल्ली (पीटीआई)। जीएसटी व्यवस्था के तहत सोना और आभूषणों पर कर की दर को लेकर असमंजस की स्थिति के बीच सर्राफा कारोबारियों का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में सोने के कारोबार में पारदर्शिता कायम रखना चाहती है तो उसे इस बहुमूल्य धातु के लिए ऊंची दर तय नहीं करनी चाहिए, अन्यथा क्षेत्र का कारोबार गड़बड़ा सकता है।

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सर्राफा कारोबारियों ने सोने और आभूषणों के कारोबार पर दो फीसद की दर से विशेष जीएसटी लगाने की मांग की है। इससे पारदर्शिता बने रहने के साथ साथ राजस्व भी बढ़ेगा। उनका कहना है कि यदि पांच फीसद की ऊंची दर से जीएसटी लगाया जाता है तो इससे कर अपवंचना (टैक्स चोरी) को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि ग्राहक बिल नहीं लेने पर दबाव डाल सकते हैं।

वित्त मंत्री अरूण जेटली की अगुवाई वाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद ने जीएसटी प्रणाली के तहत ज्यादातर वस्तुओं के लिए कर दरें तय कर दी हैं। लेकिन सोने और आभूषणों पर दर को अभी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। माना जा रहा है कि परिषद की अगली बैठक में सोने पर जीएसटी दर को अंतिम रूप दिया जाएगा। सोने पर चार से पांच फीसद की विशेष दर से जीएसटी लगाये जाने की चर्चा है।

सोने पर फिलहाल एक फीसद मूल्यवर्धित कर (वैट), एक फीसद उत्पाद शुल्क लगता है। वहीं दस फीसद सीमा शुल्क भी यदि इसमें जोड़ा जाए, तो कर की कुल दर 12 फीसद हो जाती है। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष एवं नेमीचंद बमाल्वा एंड संस, कोलकाता के संस्थापक बच्छराज बमाल्वा ने भाषा से बातचीत में कहा, हम वित्त मंत्री से सोने पर जीएसटी दर 2 फीसद के आसपास रखने की मांग कर रहे हैं। यदि इससे ऊंची दर रखी जाती है, तो सर्राफा का संगठित क्षेत्र प्रभावित होगा, साथ ही इस क्षेत्र में पारदर्शिता भी प्रभावित होगी। बमाल्वा ने कहा कि वैसे तो इस समय सोने पर एक फीसद वैट और एक फीसद उत्पाद शुल्क लगता है। लेकिन ज्यादातर सर्राफा कारोबारी सालाना कारोबार की छूट सीमा में आते हैं, ऐसे में वास्तविक दर 1.2 प्रतिशत ही बैठती है। इस स्थिति में यदि सोने पर चार या पांच फीसद की ऊंची दर से जीएसटी लगता है तो निश्चित रूप से ग्राहक बिल नहीं देने के लिए दबाव डालेगा। इससे जहां सरकार को राजस्व का नुकसान होगा, वहीं बिलिंग नहीं होने से पारदर्शिता भी प्रभावित होगी।

इन अटकलों पर कि सरकार सोने पर जीएसटी को सीमा शुल्क के साथ मिला सकती है, जिसमें आयात शुल्क को 10 फीसद से कम किया जा सकता है और जीएसटी दर ऊंची रखी जा सकती है, पर बमाल्वा ने कहा कि यह अच्छा विकल्प नहीं होगा, क्योंकि सीमा शुल्क को ग्राहक नहीं देखता है, उसका भुगतान आयात के समय किया जाता है।

दिल्ली बुलियन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष विमल गोयल ने भी कहा कि सर्राफा कारोबारी दो फीसद तक जीएसटी के लिए तैयार हैं, लेकिन यदि इसे चार या पांच फीसद रखा जाता है, तो सोने पर सीमा शुल्क के साथ कुल दर 14-15 फीसद हो जाएगी। ऐसे में निश्चित रूप से कारोबार प्रभावित होगा।
हालांकि, गोयल का मानना है कि यदि सरकार जीएसटी दर को ऊंचा रखना चाहती है, तो उसे आयात शुल्क को 10 से घटाकर 7-8 फीसद पर लाना चाहिए।

ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी फेडरेशन के उत्तर भारत के चेयरमैन विजय खन्ना ने कहा कि अभी सोने पर वास्तविक दर सिर्फ 1.2 फीसद ही है। उद्योग में करीब 90 फीसद छोटे कारोबारी है जिससे उन पर एक फीसद का उत्पाद शुल्क लागू नहीं होता है। खन्ना ने कहा कि कारोबार में किसी भी स्थिति में दो फीसद से ऊंची दर व्यावहारिक नहीं होगी। इससे जहां सोना महंगा होगा, वहीं कारोबार में बिल लेने या देने की प्रवृत्ति पर भी असर पड़ेगा।


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