2006 में भी बंद की गई थी एक ट्रेन
मुंगेर। रेल कारखाना बनने के बाद धनौरी से जमालपुर, जमालपुर से सुल्तानगंज एवं जमालपुर से मुंगे
मुंगेर। रेल कारखाना बनने के बाद धनौरी से जमालपुर, जमालपुर से सुल्तानगंज एवं जमालपुर से मुंगेर के बीच तीन जोड़ी श्रमिक ट्रेन का परिचालन शुरू किया गया था। तीनों गाड़ियां सुबह 6 और 7 बजे के बीच खुलती थी और श्रमिकों को लेकर जमालपुर वापस पहुंचती थी। इस बीच 2006 में मुंगेर तक चलने वाली ट्रेन को बंद कर दिया गया। इसके बाद 11 सालों तक दो गाड़ियां चलीं।
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50 लाख खर्च, एक लाख आमदनी
श्रमिक ट्रेन के परिचालन में रेलवे को हर महीने 40 से 50 लाख रुपये खर्च करने पड़ते थे। इससे महज एक लाख रुपये तक ही राजस्व की प्राप्ति होती थी। इसमें सफर करने वाले श्रमिक मासिक पास लेकर सफर करते हैं। रेलवे ने राजस्व वसूली में घाटा को दर्शाते हुए इसका परिचालन बंद कर दिया। अब यह गाड़ी एक नवंबर से सदा के लिए इतिहास में गुम हो जाएगी।
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दशकों तक साथ देने के बाद बीच मजधार में छोड़ा
श्रमिक गाड़ी का परिचालन बंद होने का दुख सभी को है। लोग कहते हैं कि रेलवे एक समुद्र है, जिसमें नित नई गाड़ियां आती रहेंगी। वहीं श्रमिकों का कहना है कि इस ट्रेन के सभी आठ डिब्बे सामान्य श्रेणी यानी अनारक्षित श्रेणी के थे। इस कारण इसे वास्तविक मायने में मजदूर रथ माना जाता था। यह गाड़ी आम लोगों को अपनी खास गाड़ी होने का आभास कराती थी। लोग इसे कुली स्पेशल ट्रेन नाम से भी जानते थे। कल तक यह गाड़ी किसी एक्सप्रेस ट्रेन से कम नहीं थी। क्योंकि यह हमेशा समय पर चलती थी। लेकिन हाल के दिनों में घटित आपराधिक घटनाओं के कारण यह बदनाम हो गई थी। यह सभी गांव के आसपास स्टेशनों पर रुकती थी।
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धीरे-धीरे घट रही थी संख्या
दो साल पहले कारखाना में लगभग 15 हजार के करीब हुनरमंद कारीगर इस ट्रेन से कारखाना काम करने आते थे और घर लौटते थे। जमालपुर रेल कारखाना के श्रमिकों के लिए तीन दिशाओं जमालपुर से कजरा, जमालपुर से सुलतानगंज तथा जमालपुर से मुंगेर तक श्रमिक ट्रेनों का परिचालन होता था। लेकिन लगातार रेल कर्मियों के सेवानिवृत्त होने तथा नई बहाली नहीं होने के कारण कारखाना में श्रमिकों की संख्या लगातार घटती जा रही थी और श्रमिक की कमी के कारण राजस्व में कमी आ रही थी। इसके कारण रेलवे प्रशासन को इसका परिचालन बंद करने का निर्णय लेना पड़ा। इसका परिचालन बंद होने से पूर्व वर्ष 2010 से ही कर्मियों और मजदूरों को रेलवे द्वारा परिवहन भत्ते का भुगतान किया जा रहा था। सभी श्रमिक प्रतिमाह अपने वेतन के अनुसार परिवहन भत्ता का लाभ ले रहे हैं। ऐसे में सुलतानगंज और कजरा तक चलने वाली श्रमिक ट्रेन का परिचालन बंद करना रेलवे की मजबूरी बन गई थी।
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प्रतिमाह श्रमिको को मिलेगा 1800 रुपये परिवहन भत्ता
श्रमिक ट्रेन बंद होने के बाद रेल कारखाना ने वैकल्पिक रास्ता तैयार कर लिया है। मजदूरों को अपने घर से आने-जाने के लिए हर महीने रेलवे उन्हें 1800 रुपये यात्रा भत्ता के रूप में भुगतान करेगी। इस भत्ता से मजदूर और कर्मी सड़क और रेल मार्ग से कारखाना पहुंचेंगे।